पृष्ठ:योगवासिष्ठ भाषा (दूसरा भाग).pdf/२४५

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(११२६) योगवासिष्ठ । होवैगा, अरु जो चित्तका त्याग न करेगा तो बहुर देहको धारैगा, अरु दुःख भोगैगा, अरु जैसे एक क्षेत्रते अनेक दाने उत्पन्न होते हैं, अरु जब क्षेत्रही जलिजाता है, तब अन्न नहीं उपजता, तैसे यह जो देह है, अरु जरा मृत्यु दुःख संसार इनका बीज चित्त है, जैसे अनेकका कारण क्षेत्र है, तैसे दुःख संसारका कारण चित्त है, ताते हे राजा ! चित्तका त्याग करु जब इसका त्याग करेगा, तब सुखी होवैगा ॥ हे। राजा ! जिसने सर्व त्याग किया है, सो सुखी हुआ हैं, जैसे आकाश सर्व पदार्थते रहित है, किसीका स्पर्श नहीं करता, अरु सर्वते बड़ा है, अरु सुखरूप है, अरु सर्व पदार्थ नष्ट हो जाते हैं, तो भीज्योंका त्यों रहता है, जो आकाश सर्व त्याग किया है, हे राजा ! तू भी सर्व त्यागी होड, राज्य अरु देह अरु कुटुंब गृहस्थ आदिक जो आश्रम हैं, सो सर्व चित्तने कल्पे हैं, अरु जो एकका त्याग नहीं होता, तौ कछु नहीं त्यागा, जब चित्तका त्याग करे, तब सर्व त्याग होवै॥ हे राजा ! यह धर्म अरु वैराग्य अरु ऐश्वर्य तीनों चित्तके कल्पे हुए हैं, जब चित्त पुण्यक्रियासों लगता है, तब पुण्यही प्राप्त होता है, जब पापक्रियासों लगता है, तब पापही प्राप्त होता है, अधर्म अरु अवैराग्य अरु दारिद्य होता है, जब पुण्यका फल उदय होता है, तब सुख प्राप्त होता है, अरु जब पापका फल ,उदय होता है, तब दुख प्राप्त होता है, ताते जन्ममृत्यु दुःख नहीं मिटते. जब चित्तका त्याग होता है, तब सर्व दुःख नष्ट हो जाते हैं । हे राजा । जो कोऊ पुरुष किसी वस्तुको नहीं चाहता, जो मैं नहीं लेता तब तिसकी पूजा बहुत होती है, अरु कोङ कहता है कि, मैं इस वस्तुको लेऊँ मेरेको यह देवै, तब उसको देता कोई नहीं, तोते सर्व त्याग करु, जो सुखी होवै, अरु सर्व त्याग कियेते सब तूही होवैगा, सर्वात्मा होवैगा, अरु संपूर्ण ब्रह्मांड अपनेविषे देखेगा, जैसे भालाके मणकेविषे तागा होता है, अरु मणके भी सूत्रके आधार होते हैं, तिनविषे अपर कछु नहीं होता, तैसे देखेगा कि, सर्व मैंही हौं, अरु एकरस हौं, मेरेहीविषे ब्रह्मांड स्थित है, अरु मैंही हौं, तुझते इतर कछु नहीं ॥ हे राजा जिसने सर्व त्याग किया है, सो