पृष्ठ:योगवासिष्ठ भाषा (दूसरा भाग).pdf/२२५

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(११०६) यौगवासिष्ठ । जड़ होती है, जब अर्धरात्रि व्यतीत भई, तब राजा जागा, अरु देखा। कि, सब सोये गये हैं, तब शय्याते उठा, राणीके वस्त्र एक ओर करके हाथविषे खङ्ग लेकर निकसा, जैसे क्षीरसमुद्रते विष्णु भगवान् लक्ष्मीसों उठता है, तैसे उठा, अरु सब लोक लँधता जब कोटके दरवाजेपर आया , तब अर्ध मनुष्य जागे थे, अरु अर्ध सोयेथे उनने राजाको देखा, तब राजाने कहा, हे द्वारपालो। तुम यहाँही बैठे रहौ, मैं एकलाही वीरयात्राको जाता हौं, तब राजा तीक्ष्ण वेगकार चला गया, अरु बाहर निकसि- करि कहा ॥ हे राजलक्ष्मी । तुझको नमस्कार है, अब मैं वनको चला हौं, तब एक वनविषे आया, जहां सिंह अरु सर्प अपर भयानक जीव हैं, तिनके शब्द सुनता आगे चला गया, तिसते आगे अपंर बेला आया तिसको भी लंच गया, जब आठ प्रहर राजा चला गया, तब एक ठौर जाय स्थित भया, जब सूर्य उदय हुआ, तब राजाने स्नान कारकै संध्यादिक कर्म किये अरु वृक्षके फल लेकर भोजन किये बार आगे चला कि, कोई पाछेते आयकर मेरे ताईं अटकावै नहीं, इसनिमित्त तीक्ष्ण चला, बडे पहाड़ अरु नदियाँ बेले राजा उल्लंधिकार द्वादश दिनपर्यंत चला गया, जब मंदराचल पर्वतके निकट गया, तब एक वनविषे जाय स्थित भया, अरु स्नान कारकै कछु भोजन किया अरु पत्र लेकार झुपडी बनाई मेघकी रक्षा अरु छायाके निमित्त तहाँ स्थित भयो, अरु बासन भी बनाए, तिनविषे फूल फल राखे, जब प्रातः- काल होवै, तब स्नानकारकै प्रहरपर्यंत जाप करे, बहुरि देवताओंके पूजन- निमित्त फूल चुनै अरु स्रानकरिकै द्वितीय प्रहर ऐसे व्यतीत करे; जब तीसरा प्रहर होवै, तब फल भोजन करे, चौथा प्रहर बार संध्या जाप करे। इसीप्रकार दिन अरु रात्रिव्यतीत करै, कछुक कालरात्रिको शयन करै, अपर जापविषे व्यतीत करै, इसीप्रकार कालको व्यतीत करै । हे रामजी ! राजाकी तौ यह अवस्था भई, अब राणीकी अवस्था श्रवण करु ॥ जब अर्ध रात्रिते पाछे राणी जागी तब क्या देखै कि, राजा यहाँ नहीं, वनको गया है, अरु शय्या खाली पडी है, तब राणीने सहेलियों- को जगाया अरु कहने लगी, बड़ा कष्ट है, राजा वनको निकस गया