पृष्ठ:योगवासिष्ठ भाषा (दूसरा भाग).pdf/२२४

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चिन्तामणिवृत्तान्तवर्णन-निर्वाणप्रकरण ६. (११०५) सदा जन्ममरण है, तबै राजाके मनविषे हुआ कि, मैं तीर्थीको जाऊं, अरु स्नान करौं, बहुरि राजा तीर्थों को चला, तब स्नानभी करै, दान भी करै, इसप्रकार देवता अरु तीर्थों अरु सिद्धोंके दर्शन किये स्नानकार बहुर गृहको आया, तब आयकर रात्रिके समय, रानी साथ शयन किया, अरु रानीको कहा कि, हे अंगना । अब मैं वनको तप करने के निमित्त जाता हौं, यह सब भोग मेरे ताईं दुःखदायक भासते हैं, अरु राज्य भी वनकी नाईं उजाड भासता हैं, ताते मैं तपके निमित्त वनको जाता हौं, अरु यह भोग बहुत कालपर्यंत हम भोगते रहे तो भी इनविषे सुख दृष्टि न आया, ताते मेरे ताईं अटकावना नहीं, मैं वनको जाता हौं, तब रानीने कहा ॥ हे राजन् ! अब तेरी कौन अवस्था है, जो तू वनको जाता है, अब तौ हम राज्य भोगैं, जैसे वसंतविषे फूल शोभा पाते हैं, अरु शरत्कालविषे नहीं शोभते, तैसे हम भी वृद्ध होवेंगे, तब वनको जावेंगे, अरु वनहीविषे शोभा पावैगे, जैसे वनके फूल चैत होवें तैसे हमारे केश श्वेत होगे, तब शोभा पाबैंगे, अब तो राज्य करौ । हे रामजी ! इसप्रकार जब रानीने कहा, तब राजाका चित्त वैराग्यहीविषे रहा. रानीका कहना चित्तविषे न लावता भया. जो तीर्थोंके स्नान अरु दानकार राज्यमुखते राजाको वैराग्य उपजा परंतु शांति ने पाई, जैसे चंद्रमाविना कमलिनी शांति नहीं पाती, तैसे ज्ञानविना राजाको शांति न प्राप्त भई, परंतु वैराग्यकारकै कहने लगा ।। हे रानी ! अब मेरे ताईं अटकावना नहीं अब राज्य मुझको फीका लगा है, मैं वनको जाता हौं, जो ठहराव मेरा यहां नहीं होता, जो तू कहै हम यहाँ तेरी हल करते थे, पाछे कौन करेगा, तब पृथ्वीही हमारी टहल करेगी अरु वनकी वीथियां भी स्त्रियां होवेंगी, अरु मृगके बालकही पुत्र हैं, आकाश हमारे वस्त्र हैं, फूलके गुच्छे भूषण हैं, ऐसे राजाने कहा, तब आगे रात्रिका समय हुआ अरु राजा वहाँते चला तब वहांते रानी अरु नगरते सैन्य भी पाछे चला, बडी भयानक रात्रिविषे चले कोटके बीचही जाय स्थित भये, तब राजा अरु रानी सोये, जैसे भंवरा मँवरी सोवते हैं, सैन्य अरु सहे- लियां सब सोयगये कर्मनिद्रा कर जड़ होगये, जैसे पत्थरकी शिला