पृष्ठ:योगवासिष्ठ भाषा (दूसरा भाग).pdf/२१३

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

. (३०९४ ) योगवासिष्ठ । अरु एक वासना स्वप्न है, अरु एक वासना जाग्रत है, अरु एक क्षीण वासना है; स्थावर योनिको सुषुप्त वासना है, सो आगे फुरैगी, अरु तिर्यक् योनिको स्वप्न वासना है, जो उनको वासनाको ज्ञान भी नहीं, अरु जंगम जो है मनुष्य अरु देवता आदिक तिनको जाग्रत वासना है, जो वासनाविषे लगे हैं, यह तीन वासना अज्ञानीको हैं, अरु क्षीण वासना ज्ञानीकी हैं, जो वासनाकी सत्यता नष्ट भई है, तिसको वासना कोऊ नहीं रहती, जब इसप्रकार वासना निवृत्त भई, तब आगे संसार भी नहीं रहता, अरु जब कुंडलनीशक्तिते वासना औरती है, तब पंच तन्मात्राद्वारा संसार भान होता है, संसाररूपी वृक्षका बीज वासनाही, दशों दिशा संसारवृक्षके पत्र हैं, अरु शुभ अशुभ कर्म तिसके फूल हैं, अरु स्थावर जंगम तिसके फल हैं, जैसी जैसी वासना पुर्यष्टकासाथ मिलिकर जीव करता है, तैसाही आगे फल होता है '॥ हे रामजी ! ताते वासनाका त्याग कर, वासनाही संसाररूपी वृक्षका बीज हैं, यही पुरुषप्रयत्न है, सो निर्वासनिक होना; तब विश्व कदाचित् न भासैगा, जैसे सूर्यके उदय हुए अंधकाररूपी रात्रि नहीं रहती, तैसे ज्ञानरूपी सूर्यके उदय हुए संसाररूपी अंधकार निवृत्त हो जाता ॥ हे रामजी! आधि व्याधि बडे रोग हैं, सो मनकार होते हैं। राम उवाच॥ हे भगवन्। आधि रोग तौ मनकार होता है, अरु व्याधि तौ शरीरका रोग है, मन करि कैसे होता है, सो कहौ ॥ वसिष्ठ उवाच ॥ हे रामजी ! व्याधि दो प्रकारकी है, एक लघु है, एक दीर्घ है. लघु कहिये कि, शरीरको कोई दुःख आनि प्राप्त होवे, सो पुण्यकरि अथवा स्नानकार अथवा जपकार निवृत्त हो जावै, यह,लघु कहीहै, अरु दीर्घ व्याधि सो कहिये, जो जन्म सरॅणका रोग है, सो बडा रोग है, मनके शांत हुए विना निवृत्त नहीं हों, इंसते आधि व्याधि दोङ मनकार होते हैं ॥ राम उवाच ॥ हे भगवन व्याधि मनकार कैसे होती है । वसिष्ठ.उवाच ॥ हे रामजी! जबक्तिशात झेता है, तब रोग को नहीं रहता, अरु जवलग चित्त शतिनही होती, तबलग। आधि व्याधि होती है, सो श्रवण कर कि कैसे होती हैं जो कछु बाहर अग्निकार परिपक्व होता है। 5