पृष्ठ:योगवासिष्ठ भाषा (दूसरा भाग).pdf/२०५

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

(१०८६) ' योगवासिष्ठे । आते हैं, ताते जानाजाता है कि, वही हैं जैसे शिखरध्वजकी आगे एसी प्रतिमा होवेगी । हे रामजी! इस सर्गविषे सप्त मन्वंतर व्यतीत भये,अरु चतुर चौकडी द्वापर युगकी बीती,तब जंबूद्वीप मालवदेशविषे श्रीमान् शि- खरध्वज राजाहोत भया,परंतु उस जैसा शिखरध्वज अपर होवैगा, वहन होवैगा, जब षोडश वर्षकी आयुष्यमें मैं राजकुमार था, तब एकसमय राजा शिकारको निकसा, अरु वसंतऋतुका समय था, तब राजाअपने बागमें जाय स्थित भया, तहाँ फूलोंके आश्चर्यदायक स्थान बने हुएथे तहां कमलनियां मानो स्त्रियाँ हैं, अरु धूडके कणके तिनके भूषण हैं, अरु पुष्प तिनके समीप वृक्ष हैं, इसीप्रकार मँवरीभंवरेकी सुंदर लीला देखत भया, तब राजाको चितवना भई मेरे ताईं स्त्री प्राप्त होवै, तब मैं चेष्टा करौं, अरु अधिक चिंतना भई कि, कब मेरे ताईं स्त्री प्राप्त होवे, अरु कब फूलकी शय्यापर शयन कराँगा, इत्यादिक जो भोगकी वृत्ति है सो राजा चिंतना करने लगा, तब मंत्रीने देखा कि हमारे राजाका मन स्वीपर है, ऐसे होउ जो राजाका विवाह कारये, सो मंत्री राजाके त्रिकाल ज्ञान रखते थे, शरीरकी अवस्था जानते थे, इसीसे जानत भये, तब एक राजा था, तिसकी कन्या बहुत सुंदर अरु वरप्राप्ति चाहती थी, तिस राजाकी पुत्री साथ राजा शिखरध्वजको शास्त्रकी विधिसहित विवाह किया, तब राजा बहुत प्रसन्न होकर अपने गृह- विषे आया अरु तिस स्वीका नाम चूडाला था, अरु बहुत सुंदर थी, तिसविषे राजाका हेतु बहुत हुआ, अरु स्वीका हेतु राजाविषे बहुत हुआ जो कछु राजाके मनविषे चितवना होवे, सो रानी आगे सिद्ध- कार देवै, इसप्रकार परस्पर प्रीति आपसविषे बढ़ी जैसी सँवरे अरु भंवरीकी प्रीति आपसविषे होती है, तब एक समय राजा मंत्रियोंको राज्य देकर वनको गया; वनविषे नानाप्रकारकी चेष्टा करत भया, अरु वनविषे विचरै, जैसे सदाशिव अरु पार्वती, जैसे विष्णु भगवान् अरु लक्ष्मी विचरें, तैसे राजा अरु रानी विचरने लगे, बहुरि योग- कला सीखने लगे, तब रानी राजाको योगकला शिखावै, संपूर्ण कलाकार संपन्न हुए. परंतु चूडालाकी बुद्धि राजाकी बुद्धिते तीक्ष्ण