पृष्ठ:योगवासिष्ठ भाषा (दूसरा भाग).pdf/२०३

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(१९८४) • • योगवासिष्ठ । राजाकी याचना करती थी, तिस कालमें अनिच्छित राजा भगीरथ भिक्षा माँगता आया, तब उसजाके मंत्रीने राजा भगीरथको देखा, तब क्या देखा कि, जेते कछु गुण राजाविषे होते हैं, तैसेही इसविषे हैं, तब राजा भगीरथको कहा ।। हे भगवन् ! तुम इस राज्यको अंगीकार करौ काहेते कि, तुमको अनिच्छित आय प्राप्त हुआ है, तब राजाने राज्यका ग्रहण किया, अरु न कछु भला जाना, न बुरा, ऐसे ग्रहण किया,तब राजा हस्तिपर आरूढ हुआ, अरु सैन्यकार शोभत भया, देश अरु स्थान सैन्यकारि पूर्ण भये हैं, जैसे मेघकारि ताल पूर्ण होते,तैसेही देश अरु स्थान सैन्यकरि पूर्ण करत या, जब नगारे अरु साज बाजनेलगे तब राजा गृहविषे गया, सब महलमें स्त्रियां आय विद्यमान भई, तब वह देश जो राजा भगीरथका पहिला था, तिस देशते लोक आये तब मंत्री अरु जाने आनिकरि कहा ॥ हे भगवन् ! जिन शत्रुओंकोतुमने राज्य दिया था, तिनको मृत्युने भोगिकार लिया है, जैसे मच्छी कोमल मांस ग्रासि लेती है, तैसे उनको मृत्युने ग्रास लिया है, ताते, तुम राज्यकरौ यद्यपि तुमको इच्छा नहीं, तो भी राज्य करौ काहेते कि,जोवस्तुअनि- च्छित आय प्राप्त होवे, तिसका त्याग करना श्रेष्ठ नहीं, ताते तुम राज्य करौ, तब‘राजाने उस राज्यका भी अंगीकार किया अरु राज्य करने लगा, जब पिछला वृत्तांत राजाने श्रवण किया कि, मेरे पितर कपिल मुनिके शापते भस्म हुए हैं, अरु कूपविषे पडे हैं,तब राजाने चितवना. करी कि, मैं तिनका उद्धार करौं, तब राजा अपने मंत्रीको राज्यकार एकला वनको चला. अरु वृत्त किया कि, तप करौ, तब राजा एक स्था- नविष स्थित होकर तप करने लगा, ब्रह्मा रुद्ध अरु जगत् ऋषिका गै- गाके लावनेनिमित्त आराधन किया, सहस्र वर्ष पर्यंत तप किया, तब गंगा मध्यमंडलविषे आई, सो कैसी गंगा है, जो विष्णु भगवान्के चर- णते प्रगट भई हैं, तिंस गंगाके प्रवाहको पितरोंके उद्धारनिमित्त राजा ले आया, बहुरि राजा भगीरथ समचित्त अरु शौत पदविषे स्थित होकर विचरने लगा, जिसविषे न कोई क्षोभ है, न भय है, न कोई इच्छा है,