पृष्ठ:योगवासिष्ठ भाषा (दूसरा भाग).pdf/१८८

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अलैकप्रतिपादनवर्णन-निर्वाणप्रकरण ६. (१०६९) हुआ, अरु नौबत नगारे बाजने लगे, बडा शब्द हुआ जैसे प्रलय- कालका मेघ गर्जता है, तैसे शब्द होने लगा, तब वसिष्ठजीके चरणोंपर

राजा, अरु देवताओंने फूल चढाये, सबने बडी पूजा करी, जैसे बडा पवन

चलता है, अरु वेगकारकै बाग वृक्षोंके फूल पृथ्वीपर गिर पडते हैं, तैसे बहुत फूलोंकी वर्षाकार जब बहुत पूजा होरही तब वसिष्ठजीको नमस्कार करिकै उठ खडे हुए, बहुरि आपविषे नमस्कारकरि बहुरि राजा दशरथते आदि लेकर राजा अरु ऋषि सब उठे, जैसे मंदराचल पर्वतते सूर्य उदय होता है, तैसे वसिष्ठजीते आदि लेकार ऋषि अरु राजा दशरथते आदि सब उठे, तब पृथ्वीके राजा अरु प्रजा पृथ्वीको चले आकाशके सिद्ध अरु देवता जो थे सो आकाशको चले, सब अपने अपने कर्मविषे जाय-लगे, जैसे शास्त्रोक्त व्यवहार है, तिसविणे स्थित भये, अरु जब रात्रि हुई तब आपही आप विचार करत भये कि वसिष्ठजीने कैसे ज्ञान उपदेश किया, तिस विचारविषे रात्रि एक क्षणकी 'नाईं व्यतीत भई, अरु वसिष्ठजीके मिलनेकी वॉछाविषे रात्रि कल्पके समान बीती, तब सूर्यको किरणें उदय होनेसों आनि स्थित भये, अरु राम लक्ष्मणजीते आदि लेकार सब स्थित भये, अरु सबने आपस- विषे नमस्कार किये, अरु अपने अपने आसनपर बैठ गये, शतरूप होकरि स्थित भये, जैसे पवनते रहित कमल स्थित होते हैं, तैसेही फुरणेते रहित शतिरूप स्थित भये, तब वसिष्ठजी अनुग्रह कारकै आपही कहत भये ॥ हे रामजी । तेरी प्रीति निमित्त मैं संसाररूपी मढीका बहुत खोज किया, आकाश अरु पाताल सप्त द्वीप सब खोजे हैं, परंतु ऐसा संन्यासीकोई दृष्ट न आया, जैसे अन्यका संकल्प नहीं भासता, जब रात्रिका पिछला प्रहर शेष रहा तब मैं बहुर ढूंढिकार उत्तर दिशाविषे चिन्माचीन नगरमें एक स्थान हैं, तहां एक मढी देखी, तिसके दरवाजे चढे हुए देखे, तिसविषे पके केशवाला संन्यासी बैठा अरु बाहर-उसके चेले बैठे हैं, वह दरवाजे खोलते नहीं कि, हमारे गुरुकी समाधि मत खुलि जावै, तिस स्थानविषे बैठा है, मानो दूसरा ब्रह्मा बैठा है, अरु जिस देशविषे बैठा है, तिसके बैठे दिन इक्कीस भए हैं,