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वैराग्य प्रकरण


श्रीरामजी बोले कि हे मुनीश्वर! इस काल का महापराक्रम है। इसके तेज के सम्मुख कोई नहीं रह सकता। यह क्षण में ऊँच को नीच और नीच को ऊँच कर डालता है। उसका निवारण कोई नहीं कर सकता। सब उसी के भय से काँपते हैं। यह महाभैरव है सब विश्व का ग्रास कर लेता है। इसकी चण्डिकारूप शक्ति है, वह अति बलवान् है और नदीरूप है, उसका उल्लंघन कोई नहीं कर सकता। महाकालरूप काली है, उसका बड़ा भयानक आकार है। कालरूप जो रुद्र है उससे अभिन्नरूपी कालिका है वह सबका पान करके पीछे भैरव और भैरवी नृत्य करते हैं। उस काल और कालिका का बड़ा आकार है। उसका आकाश शीश, पाताल में चरण हैं और दशों दिशा भुजा हैं। सप्त समुद्र उसके हाथ में कङ्कण हैं; सम्पूर्ण पृथ्वीरूप उसके हाथ में पात्र है; और उस पर जो जीव हैं वह भोजन के योग्य है। हिमालय और सुमेर पर्वत दोनों कानों में कुण्डल हैं; चन्द्रमा और सूर्य उसके दोनों लोचन हैं और सब तारागण उसके मस्तक में विन्दु हैं। काल के हाथ में त्रिशूल और मूसल आदि शस्त्र हैं और कालिका के हाथ में ताँतरूपी फाँसी हैं, उससे जीवों को मारती है। ऐसी कालिकादेवी सब जीवों का ग्रास करक महाभैरव के आगे नृत्य करती है, अट्टाह शब्द करती है और जीवों को भोजन करके उनकी मुण्डमाला गले में धारण करती है। भैरव के सम्मुख रहने की किसी में शक्ति नहीं, जहाँ उजाड़ है वहाँ क्षण में बस्ती कर डालता है और जहाँ बस्ती है वहाँ क्षण में उजाड़ करता है। इसी से उसका नाम देव कहते हैं। वह बड़े-बड़े पदार्थों को उत्पन्न और नष्ट करता है, स्थिर किसी को नहीं रहने देता, इससे इसका नाम कृतान्त है और नित्यरूप भी यही है, क्योंकि इसका परिणाम अनित्य है इसी से इसका नाम कर्म है। जब अभावरूपी धनुष हाथ में धरता है तो उससे रागद्वेषरूपी वाण चलाता है और उस वाण से जर्जरीभूत करके नाश करता है। जैसे बालक मृत्तिका की सेना बनाता है और उठाकर नष्ट भी कर देता है वैसे ही काल को उपजाने और नष्ट करने में कुछ यत्न नहीं करना पड़ता। हे मुनीश्वर! कालरूपी धीवर है और उसने क्रियारूपी जाल पसारा है।