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उपशम प्रकरण।

से मिश्रित है और शेष जो वृद्धावस्था है उसमें चित्त से दुःखी होता है तो यह जड़ मूर्ख परमार्थ कार्य को किस काल में साधेगा। ये सब जगत्के पदार्थ आगमापायी विरस हैं और विषम दशा से दूषित हैं अर्थात् एक भाव में नहीं रहते। सब जग असाररूप है और सत्यबुद्धि से रहित असत्यरूप है, सारपदार्थ इसमें कोई नहीं। जो राजसूय और अश्वमेध आदि यज्ञ करते हैं वे महाकल्प के किसी अंशकाल में स्वर्ग पाते हैं अधिक तो नहीं भोगते? जो अश्वमेध यज्ञ करता है वह इन्द्र होता है पर जो ब्रह्मा का एक दिन होता है उसमें चतुर्दश इन्दराज्य भोगकर नष्ट हो जाते हैं। जब सहस्र चौकड़ी युगों की व्यतीत होती हैं तब ब्रह्माका एक दिन होता है ऐसे तीम दिनों का एक मास मोर द्वादश मास का एक वर्ष होता है। सौ वर्ष ब्रह्मा की मायु है उस भायु को भोगकर ब्रह्माजी भी अन्तर्धान हो जाते हैं उसका नाम महाप्रलय है। उस महाप्रलय के अन्त में इतने स्वर्ग भोग किया तो असार सुख की आस्था क्या योग्य है? ऐसा सुख स्वर्ग में कोई नहीं, न पृथ्वी में है और न पाताल में है जो आपदा और दुःख से मिश्रित न हो। सब लोक आपदा संयुक्त हैं और सब दुःखों का मूल चिच है जो शरीररूपी बाँची में सर्पवत् रहता और आधिव्याधि बड़े दुःखरूपी विष देता है। यह जब किसी प्रकार निवृत्त हो तव सुखा हो। इससे सब जीवनीचप्रकृति के हो रहे हैं, कोई बिरला साधु है जिसके हृदय में चित्तरूपी सर्वभोगों की तृष्णारूप विषसंयुक्त नहीं होता। ये जगत् के पदार्थ असत्य हैं, जो रमणीय भासता है उसके मस्तक पर भरमणीयता स्थित है और जो सुखरूप है उसके मस्तक पर दुःख स्थित है जिसका मैं पाश्रय करूँ वह दुःख से मिश्रित है, दुःख तो दुःख से मिश्रित क्या कहिये वह तो आप ही दुःख है और जो सुख सम्पदा है सो आपदा दुःख से मिश्रित है, फिर में किसका भाश्रय करूं? ये जीव जन्मते और मरते हैं इनमें कोई विरला दुःख से रहित है। सुन्दर स्त्रियाँ जिनके नील कमलवत् नेत्र हैं और परम हास्य विलास आदिक भूषणों से संयुक्त हैं, इनको देखके मुझको हँसी आती है कि ये तो अस्थि-मांस की पुतली है और क्षणमात्र इनकी स्थिति है। जिन पुरुषों के निमेष