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वैराग्य प्रकरण।

वे शरीर के संयोग से होते हैं। मान-अपमान, जरा-मृत्यु, दम्भ-भ्रान्ति, मोह-शोक भादि सर्व विकार देह के संयोग से होते हैं जिनको देह में अभिमान है उनको धिक्कार है और सब आपदा भी उन्हीं को प्राप्त होती हैं। जैसे समुद्र में नदी प्रवेश करती है वैसे ही देहाभिमान में सर्व आपदा प्रवेश करती हैं। जिसको देह का अभिमान नहीं है वह मनुष्यों में उत्तम और वन्दना करने के योग्य है। ऐसे को मेरा भी नमस्कार है और सर्व सम्पदा भी उसीको प्राप्त होती हैं जैसे मानसरोवर में सब हंसाकर रहते हैं वैसे ही जहाँ देहाभिमान नहीं रहा वहाँ सर्व सम्पदा आ रहती हैं। हे मुनीश्वर! जैसे अपनी माया में बालक वैताल कल्पता है और उससे भय पाता है पर जब उसको विचार की प्राप्ति होती है तब वैताल का अभाव हो जाता है वैसे ही अजान से मुझको अहङ्काररूपी पिशाच ने शरीर में दृढ़ भास्था बताई है। इसलिये आप वही उपाय कहिये जिससे अहङ्काररूपी पिशाच का नाश हो और भास्थारूपी फाँसी टूटे। हे मुनीश्वर! प्रथम मुझको अज्ञान से अहङ्काररूपी पिशाच का संयोग था; उसके अनन्तर शरीर में आस्था उपजी जैसे बीज से प्रथम अंकुर होता है फिर अंकुर से वृक्ष होता है वैसे ही अहङ्कार से शरीर की प्रास्था होती है। हे मुनीश्वर! जैसे बालक छाया में वेताल देखकर दीनता को प्राप्त होता है वैसे ही महङ्काररूपी पिशाच ने मुझको दीन किया है। वह अहङ्काररूपी पिशाच अविचार से सिद्ध है। जैसे प्रकाश से अन्धकार नाश हो जाता है वैसे ही विचार करने से महकार नष्ट हो जाता है। हे मुनीश्वर! जिस शरीर में आस्था रक्खी है वह जल के प्रवाह की नाई है, स्थिर नहीं होता। जैसे बिजली का चमकना स्थिर नहीं और गन्धर्व नगरी की आस्था व्यर्थ है वैसे ही शरीर की आस्था करना व्यर्थ है। हे मुनीश्वर! जो शरीर की आस्था करके अहंकार करते हैं और जगत् के पदार्थों के निमित्त यत्न करते हैं वे महामूर्ख हैं। जैसे स्वमं मिथ्या है वैसे ही यह जगत् मिथ्या है। जो उसको सत्य जानता है वह अपने बन्धन के निमित्त यत्न करता है। जैसे घुरान अर्थात कुसवारी अपने बन्धन के निमित्त गुफा बनाती है और पतंग अपने नाश के निमित्त दीपक की इच्छा करता है वैसे ही अज्ञानी को