वशिष्ठजी बोले, हे रामजी! तब देवता प्रसन्न हुए और देवताओं का भय पाके दाम, ब्याल, कट पाताल में गये और सम्बर से भी डरे। सम्बर प्रलयकाल की प्रज्वलित अग्नि का रूप था उसका भय करके दाम, ब्याल, कट सातवें पाताल में गये और दैत्यों के मण्डल को छेदके जहाँ यमकिंकर रहते हैं उसमें कुकुहा नाम होकर जा रहे। नरकरूपी समुद्र के पालक यमकिंकरी ने दया करके इनको बैठाया जैसे पापी को चिन्ता प्राप्त होती है तैसे ही इनको स्त्रियाँ प्राप्त हुई उनके साथ सातवें पाताल में रहे। फिर इनके पुत्रपौत्रादिक बड़ी सन्तान हुई और उन्होंने सहस्र वर्ष वहाँ व्यतीत किये। वहाँ उनको यह वासना दृढ़ हो गई कि 'यह मैं हूँ 'यह मेरी स्त्री है' और पुत्र कलत्र बान्धवों में बहुत स्नेह हो गया। एक काल में वहाँ अपनी इच्छा से धर्मराज नरक के कुछ काम के लिये आया और उसको देखके सब किंकर उठ खड़े हुए और प्रणाम किया, पर दाम, ब्याल, कट ने जो उसकी बड़ाई न जानते थे उसे किंकर समान जानके प्रणाम न किया श। तब यमराज ने क्रोध किया और समझा कि ये दुष्ट मानी हैं इनको शासना देनी चाहिये। इस प्रकार विचार करके यम ने किंकरों को सैन की कि इनको परिवारसंयुक्त अग्नि की खाई में डाल दो। यह सुन वे रुदन करने और पुकारने लगे पर इनको उन्होंने डाल दिया और परिवारसंयुक्त नरक की अग्नि में वे ऐसे जले जैसे दावाग्नि में पत्र, टास, फूल, फल संयुक्त वृक्ष जल जाता है। तब मलीन वासना सेवे क्रान्त देश के राजा के धीवर हुए और जीवों की हिंसा करते रहे। जब धीवर का शरीर छूटा तब हाथी हुए, फिर चील हुए, फिर बगुले हुए, फिर त्रिगत देश में धीवर हुए और फिर बर्बरदेश में मच्छर हुए और मगध देश में कीट हुए। हे रामजी! इस प्रकार दाम, व्याल, कट, तीनों ने वासना से अनेक जन्म पाये और फिर काश्मीर देश में एक ताल है उसमें तीनों मच्छ हुए हैं। वन में अग्नि लगी थी इसलिये उसका जल भी सूख गया है, अल्प जल उष्ण रहा है उसमें रहते हैं और वही जल पान करते हैं; मस्ते हैं न जीते हैं, उनकी जो सम्पदा है उसको भी नहीं भोग सकते, चिन्ता से जलते हैं। हे रामजी!