पृष्ठ:योगवाशिष्ठ भाषा प्रथम भाग.djvu/४५८

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योगवाशिष्ठ।


रामजी ने पूछा, हे भगवन्! आप संसार के दूर करनेवाले हैं यह आपने क्या कहा? इसको खोलकर कहो कि दाम, व्याल और कट की नाई कैसे और भीम, भास, दट की स्थिति केसे हैं? जैसे वर्षाकाल के मेघ तपन को दूर करते हैं और मोर को शब्द करके जगाते हैं तैसे ही तुम अपनी कृपा से जगावो। वशिष्ठजी बोले, हे रामजी! प्रथम इसकी नाई स्थित हो, पीछे जो इष्ट हो उसमें विचरना। पाताल में सम्बर नाम एक दैत्य राजा मायावी और सर्व आश्चर्यरूप मन के मोहनेवाला था। उस दैत्य ने अपनी माया से आकाश में एक नगर रचा और उसमें बाग, दैत्यों के मन्दिर, सूर्य, चन्द्रमा और अनन्त ऐश्वर्य से सम्पन्न दैत्यों और रत्नों की स्त्रियाँ रचीं, जो गान करती थीं और जिन्होंने देवताओं की स्त्रियाँ भी जीती। उसने वृक्ष बनाये जिनमें चन्द्रवत् फल लगे और श्वेत पीत रत्नों की कमलिनी और सुवर्ण के हंस, सारस और कमल सुवर्ण के वृक्षों की बड़ी शाखों पर बैठे हुए बनाये और कञ्ज के वृक्ष जिनमें कमल वृक्ष के फूल लगाये और रत्नों से जड़े हुए सुन्दर स्थान, बरफ की नाई शीतल बगीचे, वनस्थान चन्दन के रचे। इन्द्र का नन्दन वन किन्तु उससे विशेष और सर्वऋतु के फूल लगाये, उनमें दैत्यों की स्त्रियाँ क्रीड़ा करती थीं और बड़े ऐश्वर्य रचे थे। विष्णु और सदाशिव के सदृश ऐश्वर्यसंयुक्त उसने अपना नगर किया और बड़े प्रकाश-संयुक्त रत्नों के तारागण रचे। जब रात्रि हो तब वे चन्द्रमा के साथ उदय हों और पुतलियाँ गान करें। माया के हाथी ऐसे रचे जो इन्द्र के ऐरावत को जीत लेवें। इसी प्रकार त्रिलोकी की विभूति से उत्तम विभूति उसने रची और भीतर बाहर सर्व सम्पदाओं से पूर्ण किया। सब दैत्य मण्डले-श्वर वन्दना करते थे, आप सब दैत्यों का राजा शासन करनेवाला हुआ और सब उसकी आज्ञा में चलते थे। बड़ी भुजावाले दैत्य उस नगर में विश्राम करते थे। निदान जब सम्बर दैत्य शयन करे अथवा देशान्तर में जाय तब अवकाश देखके देवताओं के नायक उसकी सेना को मार जावें और नगर लूट ले जावें। तब सम्बर ने रक्षा करनेवाले सेनापति रचे, पर समय देखके देवता उनको भी मार गये। सम्बर ने यह सुनके बड़ा