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स्थिति प्रकरण।

स्वभाव है—एक अनुलोम परिणाम और दूसरा प्रतिलोम परिणाम। जब प्रतिलोम परिणाम होता है तब दृश्यभाव प्राप्त होता है और अनुलोम परिणाम से अन्तर्मुख आत्मा की ओर आता है आत्मा शुद्धरूप है इससे आत्मा की और अनुलोम परिणाम ही मोक्ष का कारण है और कोई उपाय नहीं। वेदान्तवादियों ने यह निश्चय किया है कि यह सर्व ब्रह्म ही है। शम दम आदिक से जब मन सम्पन्न होता है तब यह निश्चय होता है कि सर्व ब्रह्म है। उनके चित्त में यही निश्चय है ब्रह्मज्ञान के सिवाय और किसी यत्न से मोक्ष नहीं होता। विज्ञानवादी कहते हैं कि जब तक बुद्धि फुरती है तब तक संसार है और जब यह अपने स्वभाव में फुरती है तब उस काल में स्वरूप में स्थिति होती है। जब वह काल आवेगा तब मोक्ष की प्राप्ति होगी। अर्हन्तजी जो बड़े हैं उनको अपने निश्चयानुसार भासता है। मीमांसा, पातञ्जल, वैशेषिक और न्यायादिक शास्त्रकार अपनी-अपनी बुद्धि से जैसा-जैसा निश्चय धरते हैं तैसा ही तैसा उनको भासता है, स्वरूप में न कोई मत है और न शास्त्र है। इसका कारण मन है, मन को ही अङ्गीकार करके सब मत डूबे हैं। न नीव कड़ुआ है, न मधु मीठा है, न अग्नि उष्ण है और न चन्द्रमा शीतल है, जैसा-जैसा जिसके मन में निश्चय होता है तैसा ही तैसा उसको भासता है। किसी को नींब प्यारी होती है और मधु कटु लगता है। नींब के कीट को मधु नहीं रुचता तो क्या मधु कटुक हो गया। विरहिणी स्त्री को चन्द्रमा अग्निवत् भासता है और चकोर अग्नि को भक्षण कर लेता है। निदान जैसी-जैसी भावना पदार्थ में होती है तैसा ही तैसा हो भासता है। सब जगत् भावना-मात्र है, जिस पुरुष को दृश्य में भावना है वह अनेक दुःख और भ्रम देखता है और जिसको शम दमादिक साधन से अकृत्रिमपद की प्राप्ति होती है और मन तदाकार हुआ है वह शान्तिमान् होता है, दूसरा उस सुख को नहीं प्राप्त होता है। हे रामजी! यह जगत् दृश्य तुम्हारे मन के स्मरण में स्थित हुआ है तो तुच्छरूप है। इसको मन से त्याग करो। ये सुख-दुःख आदिक महाभ्रम देनेवाले हैं और यह संसार अपवित्र और असत् तथा मोहरूप महाभय का कारण है। आभास मायामात्र