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उत्पत्ति प्रकरण।

बड़ा भोर छोटा जो होता है सो देश काल और द्रव्य से होता है। एक बाल्यावस्था में मृतक होते हैं और एक यौवन अवस्था में मृतक होते हैं जिसकी देश काल और द्रव्य की चेष्टा यथाशास्त्र होती है उसकी गति भी शास्त्र के अनुसार होती है और जो चेष्टा शास्त्र के विरुद्ध होती है तो आयु भी वैसी ही होती है। एक क्रिया ऐसी है जिससे आयु वृद्धि होती है और एक क्रिया से घट जाती है। इसी प्रकार देश, काल, क्रिया, द्रव्य, आयु के घटाने बढ़ानेवाली हैं। उनमें जीवों के शरीर बड़ी सूक्ष्म अवस्था में स्थित हैं। यह आदि नीति रची हैं। युगों की मर्यादा जैसे है वैसे ही है। एक सौ दिव्य वर्ष कलियुग के दो सौ दिव्य वर्ष द्वापर के तीन सौ त्रेता के और चार सौ सत्युग के—यह दिव्य वर्ष हैं। लौकिक वर्षों के अनुसार चारलाख बत्तीस हजार वर्ष कलियुग है; आठलाख चौंसठ हजार वर्ष द्वापरयुग है; बारह लाख छानवे हजार वर्ष त्रेता है और सत्रह लाख अट्ठाइस हजार वर्ष सतयुग है। इस प्रकार युगों की मर्यादा है जिनमें जीव अपने कर्मों के फल से आयु भोगते हैं। हे लीले! जो पाप करनेवाले हैं वह मृतक होते हैं और उनको मृत्युकाल में भी बड़ा कष्ट होता है। फिर लीला ने पूछा, हे देवि! मृतक होने पर सुख और दुःख कैसे होते हैं और कैसे उन्हें भोगते हैं ? देवी बोली, हे लीले! जीव की तीन प्रकार की मृत्यु होती है। एक मूर्ख की, दूसरी धारणाभ्यासी की और तीसरी ज्ञानवान की। उनका भिन्न भिन्न वृत्तान्त सुनो। हे लीले! जो धारणाभ्यासी हैं वह मूर्ख भी नहीं और ज्ञानवान भी नहीं, वह जिस इष्टदेवता की धारणा करते हैं शरीर को त्याग के उसी देवता के लोक को प्राप्त होते हैं और जो ब्रह्माभ्यासी हैं पर उनको पूर्ण दशा नहीं पास हुई उनका सुख से शरीर छूटता है। जैसे सुषुप्ति हो जाती है वैसे ही धारणाभ्यासी शरीर त्यागता है और फिर सुख भोगकर आत्मतत्त्व को प्राप्त होता है। ज्ञानवान का शरीर भी सुख से छूटता है; उसको भी यत्न कुछ नहीं होता भार उस ज्ञानी के प्राण भी वहीं लीन होते हैं और यह विदेहमुक्त होता है। जब मूर्ख की मृत्यु होने लगती है तो उसे बड़ा कष्ट होता है। मूर्ख वही है जिसकी अज्ञानियों की