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योगवाशिष्ठ।

दिकगुण स्थित होते हैं। जैसे बड़े ताल से मेघ और मेघ से ताल पुष्ट होता है वैसे ही शमादिक गुणों से आत्मज्ञान होता है और आत्मज्ञान से शमादिक गुण पुष्ट होते हैं। ऐसा विचार करके शम सन्तोषादिक गुणों का अभ्यास करो तब शीघ्र ही आत्मतत्त्व को प्राप्त होगे। हे रामजी! ज्ञानवान पुरुष को शमादिक गुण स्वाभाविक प्राप्त होते हैं और जिज्ञासुको अभ्यास करने से प्राप्त होते हैं। जैसे धान्य की रक्षा जब स्त्री करती है और ऊँचे शब्द से पक्षियों को उड़ाती है तब फल को पाती है और उससे पुष्ट होती है वैसे ही शम संतोषादिक के पालने से आत्मतत्त्व की प्राप्ति होती है। हे रामजी! इस मोक्ष उपाय शास्त्र को आदि से लेकर अन्त पर्यन्त विचारे तो भ्रान्ति निवृत्ति होके धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष सर्व पुरुषार्थ सिद्ध होते हैं। यह शान मोक्ष उपाय का परम कारण है। जो शुद्ध बुद्धिमान पुरुष इसको विचारेगा उसको शीघ्र ही आत्मपद की प्राप्ति होगी। इससे इस मोक्ष उपाय शास्त्र का भले प्रकार अभ्यास करो।

 

इति श्रीयोगवाशिष्ठे मुमुक्षुप्रकरणे आत्मप्राप्तिवर्णनन्नामैकोन-
विंशतितमस्सर्गः॥१९॥

 

समाप्तमिदं मुमुक्षुप्रकरणं द्वितीयम्॥