पृष्ठ:योगवाशिष्ठ भाषा प्रथम भाग.djvu/११३

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मुमुक्षु प्रकरण।

क्योंकि विषय के परिणाम में अनन्त दुःख हैं और हमसे ज्ञानवानों का संग करो। हमारे वचनों के विचार से तुम्हारे सब दुःख नष्ट हो जावेंगे। जिस पुरुष ने हमारे साथ प्रीति की है उसको हमने आनन्द की प्राप्ति, जिससे ब्रह्मादिक आनन्दित हुए हैं; करा दी है। ज्ञानवान आनन्दित हुए और निर्दुःख पद को प्राप्त हुए हैं। हे रामजी! आत्मा का प्रमाद जीव को दीन करता है। जिसने सन्तों और शास्त्रों के विचार दारा दृश्य को अदृश्य जाना है वह निर्भय हुआ है। अज्ञानी का हृदयकमल तब तक सकुचा रहता है जब तक तृष्णारूपी रात्रि नष्ट नहीं हो जाती और हृदयकमल आनन्द से नहीं खिल आता। हे रामजी! जिस पुरुष ने परमार्थ मार्ग को त्याग दिया है और संसार के खान पान आदि भोगों में मग्न हुआ हे उसको तुम मेंढक जानों, जो कीच में पड़ा शब्द करता है। हे रामजी! यह संसार बड़ा आपदा का समुद्र है। इसमें जो कोई श्रेष्ठ पुरुष हे वह सत्संग और सत्शास्त्र के विचार से इस समुद्र को उलंघ जाता है भोर परमानन्द निर्भयपद को जो आदि अन्त और मध्य से रहित है प्राप्त होता है और जो संसारसमुद्र के सम्मुख हुआ है वह दुःख से दुःख को प्राप्त होता है और कष्ट से कष्टतर नरक को प्राप्त होता है। जैसे विष को विष जान उसका पान करता है और वह विष उसको नाश करता है वैसे ही जो पुरुष संसार को असत्य जानकर फिर संसार की ओर यत्न करता है सो मृत्यु को प्राप्त होता है। हे रामजी! जो पुरुष आत्मपद में विमुख है पर उसे कल्याणरूप जानता है और उसके अभ्यास का त्यागकर संसार की ओर धावता है वह वैसे ही नष्ट होगा और जन्म मरण को पावेगा जैसे किसी के घर में अग्नि लगे और वह तृण के घर और तृण ही की शय्या में शयन करे तो वह नष्ट होगा। जो संसार के पदार्थों में सुख मानते हैं वे सुख बिजली की चमक से हैं जो होके मिट जाते हैं—स्थिर नहीं रहते। संसार का दुःख आगमापायी है। हे रामजी! यह संसार अविचार से भासता है और विचार करने से लीन हो जाता है। यदि विचार करने से लीन न होता तो तुमको उपदेश करने का काम नहीं था। इसी कारण पुरुषार्थ चाहिए