पृष्ठ:याक़ूती तख़्ती.djvu/९

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परिच्छेद]
(७)
यमज-सहोदंरा


यही काम था कि जब और जिधर से वे सुभीता पाते, एकाएक पंजे झाड़ पड़ते थे, और जहां तक बनता, माट कार और लूट खसोट करके भाग जाते थे। वे बराबर ऊंचे पहाड़ा की चोटियों पर से सावनभादों की झड़ी की भांति गोली बरसाते और बड़ा उपद्रव मचाते थे। उनकी यह दशा देखकर सेनापति की आज्ञा से हम लोगों ने अपने डेरे डखाड़े और बड़ी तेजी के साथ उस कलेजातोड़ जाड़े की कुछभी पर्वा न करके हुंकारध्वनि करते हुए अफरीदियों के गांव की ओर बढ़े। उस समय उस भयानक, दुर्गभ, अपरिचित बीहड़ और बरफ़ से ढंके हुए पहाड़ी रास्ते में हमलोगों को जैसे २दुःख भोगने पड़े थे, वह जीही जानता है। आह; वह कैसा भयानक समय था कि ऊपर-पहाड़ की चोटियों पर से तो गोली के मेह बरसते थे और नीचे-बहुत ही नीचे, बीहड़ रास्ते को साफ़ करते हुए हमलोग मरते पचते आगे बढ़ते जाते थे!!!

"उस समय सिवाय मरने के और कछ चारा न था: क्योंकि बैरी ऊपर थे और हमलोग नीचे उनकी गोली हमलोगों का काम तमाम किए देती थी, और हमलोगों के गोली गोले उन तक पहुंचतेही न थे। ऐसी अवस्था में जब तीन बार अंगरेज़ी सेना ने पूरी हार खाई, तब सेनापति सर बिलियम लाकहार्ट साहब मारे क्रोध के पागल होगए, किन्तु बैरियों की गोलीवर्षा के आगे उनकी एक न चली और बहुतेरे सिपाही खेत रहे।

“अन्त में हमलोगों की 'सिक्ख रेजिमेन्ट' और ' गोर्खा सेना' उस गोलीवर्षा में न्टत्य करती हुई साक्षात् मृत्यु को तुच्छ करके बड़ी तेजी के साथ पहाड़ पर चढ़ने लगी। उस दिन, उस मृत्युमय पहाड़ पर चढ़ने के समय, कितने नामी बहादुरों ने अपने प्राण खोए होंगे, इसकी गिनती नहीं है, क्योंकि तुम लोगों ने अखवारों जो में कुछ पढ़ा होगा, उसे बहुतही थोड़ा कहना चाहिए। अस्तु, जगदीश्वर की दया से उस दिन हमलोगों ने अपने सेनापति के सन्मान की रक्षा की और साक्षात् मृत्यु के भी मुहं में थपेड़े लगाकर बैरियों के 'चिन' नामक एक बहुत बड़े गांव पर अपना अधिकार कर लिया। अफरीदियों के उस बड़े इलाके में, पर्वत के ऊपर, वृटिशपताका फहराने लगी और हमलोगों ने भी विजयोल्लास से उन्मत्त होकर अपनी कमर ढीली की। क्योंकि फिर कई दिनों तक अफ़रीदियों का गोल नहीं दिखलाई पड़ा था और अब इमलोग ऐसी ऊंची जगह में थे कि जहां पर उनके एकाएक आकर