जैसी कि हमीदा ने निहालसिंह को दी थी मेरे गले में डाल दी।
मैंने फिर उसके हाथ को अपने हाथ में ले कर कहा,-"प्यारी, कुसीदा! आज सत्य की साक्षी मान कर मैं अपना हृदय तुम्हारे समर्पण करता हूं और तुम्हे अपनी गृहस्वामिनी बनाता हूं।"
यह सुन कर कुसीदा ने मेरे हाथ को चूम लिया और मुझसे
आंखे मिला कर और फिर उन्हें नीचे कर के कहा, "मैं आपकी लौंडी हूँ।"
इतने ही में किसी तरह का कोई खटका हुआ जिसे सुन कर कुसीदा ने मेरे हाथ में से अपना हाथ खैंच लिया, और मैं भी कुछ सावधान हो गया, पर कोई यहां पर आया नहीं। थोड़ी देर तक तो हम दोनो चुपचाप थे, पर जब मैंने यह समझ लिया कि अभी यहां कोई न आवेगा तो मैंने प्रेमान्ध होकर कुसीदा को अपनी ओर खैंच कर उसे अपने हृदय से लगा लिया और उसके गालो को चूम कर कहा,-'प्यारी! मुझे न भूलना।"
कुसीदा ने भी मेरे ओठों को चूम कर अपने सच्चे प्रेम का परिचय मुझे दिया और कहा,-"मैं तो अब आपकी लौंडी हूं, इसलिये यह बात तो मुझे कहनी चाहिए कि आप मुझ पर हमेशः मिहरवानी रक्खेंगे और मुझे कभी भूल न जायंगे।"
अहा! एक यह भी प्रेम है! और एक कलकत्ते वाली उस ब्राह्मभगिनी कुलटा का भी प्रेम था!!! अब पाठक इस पर स्वयं विचार करलें कि सच्चा प्रेम कौन है और स्वर्ग के सच्चे सुख का अनुभव कौन कराता है!!!
निदान, एक घंटे तक मैं कुसीदा के साथ प्रेम की बातें करता रहा, इसके अनन्तर एक लौंडी ने आकर हमीदा के आने की खबर दी और उसके दूसरेहीक्षण हाथ में शर्बत का प्याला लिए हुई हमीदा आ पहुंची। उसने प्याला कुलीदा के हाथ में देकर कहा,-"इसे इन्हें पिलाओ;" और मेरी ओर देखकर कहा,- "आज आप को हमलोगो के साथ खाना, खाना होगा।"
इतना कह और मेरा उत्तर बिना सुनेही हमीदा वहांसे चली गई और उसके जानेपर कुसीदा ने बड़े प्यार से मेरे गले में बाहें डालकर शर्बत का प्याला मेरे मुहं से लगा दिया। फिर तो थोड़ा सा शर्बत मैंने पीया और थोड़ासा अपने हाथ से कुसीदा को पिलाया और फिर