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परिच्छेद]
(३३)
यमज-सहोदरा


मुकाम है कि लार मेहरखां की लड़की एक गैरमज़हब, काफ़िर अपने मुल्क के दुश्मन और अजनवी शल्ल के इश्क में दीवानी हुई है और वह हया व शर्म को ताक पर धर कर ऐसी शोखी के साथ उसपर अपना इश्क ज़ाहिर कर रही है! इसके बनिस्बत तो कल आप अगर उन काफिरों के हाथ, जिन्होंने कि कल आप पर हमला किया था, मर गई होती तो कहीं अच्छा होता। अफ़सोस 'लुंडीकोतल' के नामी सर्दार मेहरखां की नेकरखस्लत दुख्तर की यह बेशर्मी: लानत है इस इश्क पर और हज़ार लानत है ऐसे आशिक पर।"

यह सुनते ही हमीदा ऐसी तेजी के साथ उठ खड़ी हुई, जैसे बाणविद्धा सिंहिनी और पुच्छविमर्दिता सर्पिणी अत्यंत कुपित होकर उठती है।

निदान, हमीदा ने उसकी ओर तुच्छ दृष्टि से देख कड़क कर कहा,-"हरामज़ाद, पाजी, बदज़ात! मेहरखां के एक नाचीज गुलाम को भी इतना हौसला हुआ है कि वह कंबख्त अपने मालिक की लड़की की नसीहत करे! मगर खैर, तेरी इस शोखी की सज़ा तो मैं तुझे अभी देती; लेकिन नहीं, इस वक्त तो मैं तुझे छोड़ देती हूं, पर तू याद रख कि वह वक्त दूर नहीं है जबकि मेरी छुरी तेरे कलेजे का खून पीएगी और तेरे तन की बोटियां चील कब्वों की खुराक बनेंगी! बस तू फ़ौरन यहां से अपना मुंह काला कर, वरन में अभी तेरा काम तमाम कर दूँगी।"

यों कह कर हमीदा ने अब्दुल पर थूका और तेजी के साथ अपनी कमर से उस कातिल छुरे को खैंच लिया। उस छुरे को देखतेही डरपोक अबदुल एक दम पीछे हटा और गुफा के द्वार पर जाकर फिर कहने लगा,-"आह, अफ़सोस आप मुझ जान का डर क्या दिखलाती हैं क्या यह बात आप भूल गई कि अफरीदी बहादुर मौत से डरतेही नहीं; लेकिन ऐसी बात अगर आपने कहा तो कोई ताज्जुब न करना चाहए, क्योंकि इस वक्त आप बेख़ुदी के आलम में मुबतिला है। मगर खै, आप यकीन कीजिए कि मैं मौत से डरनेवाला नहीं हूं, लेकिन तो भी अपने सर्दार की लड़की को मैं एक काफ़िर के इश्क में दीवानी देखकर चुप होजाऊं, यह मुझसे हर्गिज़ न होगा। बीबी हमीदा! इस वक्त तुम मुझपर चाहे जितनी तेज़ी झाड़लो, लेकिन कल जब भरे दरबार में में तुम्हारी बदचलनी का इज़हार दूँगा, तब तुम देखना कि तुम्हारी छरी मेरा काम तमाम करती है, या जल्लाद की पैनी तल्वार तुम्हारा या तुम्हारे सदजात आशिक का!!!"