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परिच्छेद]
(२३)
यमज-सहोदरा


बुझाना नहीं चाहता।"

सिपाही,-"खैर, तो यह तुम्हारी खुशी!"

यों कह कर जब वह सिपाही जाने लगा तो मैंने उसे ठहराया और हमीदा की दी हुई उसी 'याकूती तख्ती' को अपने गले से उतार उसके हाथ में दिया और कहा,-"क्या तुम इसे पहचानते हो कि यह क्या चीज़ है?"

यह सुन कर उस सिपाही ने उस तख्ती को ले कर और मशाल के उजाले में उसे खूब उलट पलट के देख कर चूम लिया और मेरी ओर आंखें गुरेर कर कहा,-"ओफ़! यह तुम्हारा ही काम था! अफ़सोस! तुम चोरी भी करते हो!

इस विचित्र शब्द को सुनकर मैने कहा,-"ऐं! चोरी का शब्द तुमने किस अभिप्राय ले कहा!"

उस सिपाही ने कहा,--"अय काफ़िर चोट्टे! यह तख्ती मेरे सर्दार की लड़की की है। आजही हमलोगों को यह मालूम हुआ कि यह चोरी होगई है। लेकिन बड़ी ख़ुशी की बात है कि यह माल बड़ी आसानी से बरामद होगया, जिसकी वजह से में मालामाल होजाऊंगा।"

मैंने कहा,-"यह तुमने किससे सुना कि यह तख्ती चोरी होगई है?

सिपाही,-"यह मैं नहीं बतला सकता।"

मैं,-"किन्तु यह तो तुम सोचो कि यदि मैने यह तख्ती चुराई होती तो तुम्हें मैं इसे दिखलाताही क्यों? और यह भी बात सोचने की है कि जबसे मुझे अफ़रीदी सिपाही कैद करके यहां लाकर बंद कर गए हैं, तबसे भला मैंने इस तख्ती के चुराने का अवसर ही कब पाया?"

सिपाही,-"तो तुमने अगर यह तख्ती नहीं चुराई तो यह तुम्हारे पास, आख़िर आई ही कैसे?"

मैंने सोचा कि इसके ठीक ठीक उत्तर देने में हमीदा की सारी बातें कहनी पड़ेगी, जिन्हें एक सिपाही के आगे प्रगट करना मैंने उचित न समझा; अतएव मैंने कहा,-"तुम्हारे इस सवाल का जवाब मैं नहीं दिया चाहता।"

इस पर उस सिपाही ने कहा,- ठीक है, तभी तो तुम चोरी की इल्लत में गिरफ्तार करके यहां लाए गए हो, और इस कसूर में अजब नहीं कि तुम्हें कल फांसी दी जाय, या जल्लाद की तेज़