ममे लोग समझ जायगे और उसको अपनाने में अधिक दस-वित होंगे। निदान इसी पुस्तकसे श्रीगणेश करना निश्चय हुआ।
वहीं पर दो शब्द मूल्य के विषयमें भी लिख देना उचित है। इस पुस्तक का इतना कम मूल्य देखकर लोग विस्मित होंगे,क्योंकि इतनी भारी पुस्तकका भूल्य १) वर्तमान प्रकाशन क्षेत्रमे तो एक तरहकी क्रान्ति है। पर इसे कान्ति नहीं समझनी चाहिये। वास्तवमें पुस्तकोंके मूल्य की दर इम मूल्य की दरसे कुछ ही अधिक होनी चाहिये। इससे दोनों का लाभ हो सकता है। प्रकाशक व्यवमाय भी कर सकते हैं और हिन्दी साहित्य का प्रचार भी बढ़ता जायगा। पर वर्तमान समय में जो धीगा धींगा हो रही है उसीका फल है कि आज पुस्तको का मूल्य देखकर दांतों तले अंगुली दबानी पडती है और एक साधारण पुस्तकके २००० के संस्करणको खपाते खपाते दो तीन वष लग जाते हैं और दोष मढ़ा जाता है जनता के माथे कि वह हिन्दी साहित्यमें रुचि नहीं दिखलाती। इस समय साहित्य क्षेमें आवश्यकता है उदार प्रकाशकों की जो कम लाम उठाकर साहित्य के प्रचारकी चेष्टा करे।
बडा बजार कुमार सभाके प्रकाशनका उद्देश्य होगा सुलभ मूल्य में (कमसे कम दाम रखकर सभी उपयोगी विषयोंपर हिन्दी भाषा में उत्तमोत्तम पुस्तके प्रकाशित करना और जनतामें उनका प्रचार करना जिससे थे लोग भी हिन्दी साहित्य को अपनाने लगे