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लेखोकी चर्चा की। मैंने उसी समय निश्चय किया कि यह पुस्तक अवश्य प्रकाशित की जाए क्योंकि इसके द्वारा सभा के सभी उद्देश्य पूरे होते हैं। प्रचार के लिये इससे उपयोगी दूसरी पुस्तक नहीं हो सकती थी। यङ्ग इण्डियाके लेख अंग्रेजीमें निकले हैं। इनकी उपयोगिता के बारे में अपनी ओर से कुछ लिखनेकी आवश्यकता नहीं है। केवलमात्र इतना लिख देना काफी होगा कि महात्माजीके हाथों में माते ही इसकी ग्राहक संख्या १२०० से ४०,००० हो गई। पर भारतमें अंग्रेजी पढ़े लिखोंकी संख्या कितनी है? प्राय: नहीं के बराबर है। महात्माजी सदा यही कहा करते थे कि हमारा पल तो उन २२ करोड़ अपढ़ोंमें है। हमारे आन्दोलनको सफलता उनके ही सहयोगसे हो सकती है। पर यङ्ग इण्डिया द्वारा अंग्रेजी भाषामें महात्माजी अपने जिन विचारोंको प्रगट करते थे उनको उन असंख्य अंग्रेजी भाषासे अनभिज्ञ जनताके पास तक पहुँचाने का या यत्न किया गया। खेदके साथ लिखना पड़ता है कि इसके लिये कोई यधेष्ठ और सन्तोषजनक उद्योग नहीं किया गया। मैंने इस बातकी अत्यन्त आवश्यकता देखी क्योंकि इनका हिन्दी अनुवाद प्रकाशित करके सुलभ मूल्यमें प्रचार करना असहयोग आन्दोलनका बड़ा सहायक हो सकता है। जिन लोगोंने महात्माजीक विचारों को केवल दूरसे सुन लिया है उनके सामने उन विचारोंका खजाना रख दिया जाना और उसमें से अपने अपने एक चुन लेनेकी उन्हें पूरी स्वतन्त्रता रहेगी। असहयोग