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खिलाफत की समस्या


युद्धका दांव पलस्टाइन नहीं था। ब्रिटिश सरकारने कभी भी इस बातका साहस न किया होता कि वह नुसलमानोंसे कहती कि तुम इस युद्ध में भाग लेकर मुसलमानोंके हाथसे पलस्टाइन छीन लो और उसे यह दियोंको सौंप दो। पलस्टाइन यहूदियों का धमस्थान है। उनके धार्मिक भावोंकी रक्षा करना आवश्यक है और यदि मुसलमान उन्हें धार्मिक पूजा आदिमे पूर्ण स्वतन्त्रता न देकर किसी तरहका वाधा डालें तो यहूदियोंकी शिकायत यथार्थ होगी।

पर यह किसी भा सिद्धान्तसे प्रतिपादित नहीं होता कि पलस्टाइन यहूदियोको दे ,या जाय। यहूदियों को उचित है कि या तो पैलस्टाइनके सम्बन्धमें वे अपने सिद्धान्तमें परिवतन करें या यदि यही धर्म युद्धसे काम लेनेकी योजना करता है तो वे संसारके मुसलमानांके साथ धार्मिक युद्ध करे जिसमें ईसाई उनके साथी होंगे। पर समारकी प्रगति धार्मिक युद्ध न होने देगी और धार्मिक प्रश्न मदाचारके अनुसार निर्णीन हो जायगे : पर इस प्रकारका शुभ समय कभी उपस्थित होता है या नहीं। यह स्पष्ट है कि यदि खिलाफतक प्रश्नका न्यायतः निपटारा करना है तो जजीरतुल अरबपर मुसलमानोंका पूर्ण अधिकार हो और वह खलीफाकी छत्रछायामे रहे।

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