सप्रु , पण्डित मोतीलाल नेहरू, मिस्टर चिन्तार्माण आदि प्रमुख नेता उपस्थित थे। भिन्न भिन्न मतों के हिन्दू नेताओं की राय मांन कर खिलाफत सभाने बुद्धिमानी का काम किया । मिसेज बेसेएट तथा डाकृर तेजबहादुर सपूने असहयोग आन्दोलन का घोर विरोध किया । अन्य हिन्दू नेताओं ने पहलू बचाकर भाषण किया । कितने हिन्दू नेता ऐसे भी थे जिन्होंने सिद्धान्ततः तो असहयोग आन्दोलन को स्वीकार किया पर उसके सञ्चालन में अनेक तरह की कठिनाइयां दिखलाई । उन्हें इस बातका भी भय था कि यदि मुसलमानों ने अफगानों को निमन्त्रित किया तो बखेड़ा मच सकता है । इस पर मुसलमानों ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि यदि कोई भी विदेशी शक्ति भारत पर आक्रमण कर उसे अपने अधीन करने की चेष्टा करेगी तो हम लोग प्राण रहते उसका विरोध करेंगे पर यदि कोई शक्ति इस उद्देश्य से भारत पर आक्रमण करेगी कि वह हम लोगों के साथ न्याय कराने के लिये ब्रिटिश सरकार को दण्ड दे तो हम लोग यदि उसकी सहायता नहीं करेंगे तो उसका स्वागत अवश्य करेंगे । हिन्दुओं का भय और उनकी आशङ्का निर्मूल नहीं है। पर मुसलमानों की स्थिति का प्रतिरोध करना भी कठिन है । ऐसी अवस्था में सबसे उत्तम तरीका हिन्दुओं के लिये यह होगा कि वे असहयोग आन्दोलन को पूरी तरह सफल बनावें । यही एक उपाय है जिसके द्वारा भारत इस्लामकी सेना और अंग्रेजों की सेनाका युद्ध स्थल नहीं बन सकेगा ।
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खिलाफतकी समस्या