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खिलाफतकी समस्या


घूस देती है जैसे, वह आपको उपाधि प्रदान करती है, तमगे देती है, नौकरियां देती है और जब ये सब तरीके असफल हो जाते हैं तब वह बलप्रयोग करती है।

इसी नीतिका सहारा सर माइकल ओडायरने लिया और इसी नीतिका सहारा अन्य सफेद कर्मचारी भी लेंगे यदि उन्हें इसकी आवश्यकता प्रतीत होगी। इसलिये यदि हम उपाधियोंके लिये मुह न फैलावें, तमगों और आनरेरी पदोंके लिये दौड़ते न फिरें—क्योकिं इनसे देशको किसी तरहका लाभ नहीं हो सकता—तो हमारी आधी विजय तो ज्योंही हो जाती है।

मेरे सलाहकारों (?) का कहना है कि यदि तुर्कीके साथ सन्धिकी जो शर्तें की गई हैं उनपर पुनर्विचार भी किया गया तो यह असहयोगके कारण नहीं होगा। पर मैं उन्हें बतला देना चाहता हूं कि असहयोगका उद्देश्य सन्धिकी शर्तोंमें सुधार करानेसे कही उच्च हैं। यदि हम सन्धिकी शर्तों में सुधार के लिये मजबूर नहीं कर सकते तो हम इतना अवश्य कर सकते हैं कि जो सरकार इस तरह किसीका हक हड़प जानेके लिये तैयार है उसका साथ छोड़ दे सकते हैं। और यदि असहयोग आन्दोलनको मैं पूर्ण सफलतासे अन्तिम सीमा तक ले जा सका तो मैं सरकारको मजबूर कर दूंगा कि या तो वह भारतवर्षसे हाथ धोये या हड़पनेकी नीतिका त्याग करे। मुझे अभी तक विश्वास है कि ब्रिटिन अपने वर्तमान चालबाज प्रधान मन्त्रीको हटाकर उसके स्थानपर, ऐसा योग्य व्यक्ति रखेगा जो जागृत