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खिलाफतकी समस्या

करनेके लिये मोसूलकी तेलको खाने आहुतिका काम करेंगी और उसे भस्मसात कर देगी। समाचार पत्रोंका कहना है कि अरबवाले अपने बीच में हिन्दुस्थानी सैनिक नहीं देखना चाहते। इसमें आश्चर्यकी कोई बात नहीं है। वे जितने खूखार है उतने ही बीर हैं। उन्हें यह कभी भी पसन्द नहीं आ सकता कि हिन्दुस्थानी फौज मेसापोटामियामें रहे। असहयोग आन्दोलन के अलावे भी प्रत्येक भारतीयको उचित है कि वह किमी भी अवस्थामें मेसापोटामिया जाना स्वीकार न करे। हमें अपनी स्थितिपर विचार कर लेना चाहिये। किसी तरहकी भी नौकरी स्वीकार करनेके पहले हमे यह भली भाँति देख लेना चाहिये कि ऐसा करनेसे हम किसी तरह अन्यायाचरणमें योग दान तो नहीं कर रहे हैं? खिलाफतका प्रश्न और अन्यायकी बातें छोड दें तोभी अग्रेजोंको मेसापोटामियापर कब्जा करनेका कोई अधिकार नहीं है। जिसे हम दिन दहाडे लूट कह सकते उसके लिये साम्राज्य सरकार की किसी तरहकी सहायता करना हमारा धर्म नही है। मेसापोटामियामें यदि हम केवल जीविकाके ज्यालसे ही जाते हैं तोभी हमें देख लेना चाहिये दि। जिस तरीकेसे हम जीविका उपार्जन करने जा रहे हैं वह किसी तरह लाञ्छित या गर्हणीव तो नहीं है।

असहयोगके नामोधारणसे ही कितने लोगोंकी गईन हिलने लपाती है। यह देखकर मुझे भतिवाय विस्मय होता है। सह-यो समान पुरभसर, पवित्र और जोरदार कोई भी शा नहीं