सरहके काम करनेसे उसे रोक सकती थो, जैसे समाचारपत्र
निकालमा, नोटिश छपाना व बोटमा, तथा सार्वजनिक सभामाम
शामिल होना। 'आवश्यकता पड़नेपर उसे गिरफ्तारकर तथा
हवालतमें डालकर भी उसका नियन्त्रण कर सकती थी। भारत
रक्षा कानून तथा इस तरहके अन्य प्रान्तीय रेगुलेशनोंके द्वारा
प्रबन्धक विभागको जो अधिकार दिया गया था तथा उस अधि-
कारका उसने जिस प्रकार दुरुपयोग किया था उसका कडमा
फल भारतीयों को अभीतक भूला नहीं था। उन्होंने भली भांति
देख और समझ लिया था कि यदि यह एक स्वीकार हो गया तो
भारत वासियोंकी दुर्दशा हो जायगी। इससे रोलट रिपोर्ट के
प्रकाशिक होतेहो देशमें असन्तोष फैलगया। १९१८में जिस
समय युद्ध समाप्त हुआ भारतमें अशान्ति फैल रही थी। भार-
तीय इस विश्वास घातसे बड़ेही असन्तुष्ट तथा निराश होरहे थे।
इसका परिणाम यह हुआ कि अब भावो शासन सुधारों के बारेमें
भी अनेक तरहको बाशंकायें उठने लगीं। लोगोने प्रत्यक्ष देखा
कि सुधारोंसे तो कुछ फल निकलेगा नहीं उलटे क्रान्तिका बहाना
करके लोगोंकी लिखने, पढ़ने, बोलने, रहने तथा बैठने उठने
तकको स्वतन्त्रता हर ली जायगी। अतमत्वा १९१को
फरवरीकी बैठको रौलट साहबकी सिफाणिों विबारार्य
व्यवसापक सभामं उपस्थितकी गई। सारे भारतने पक्रबार-
से इनका विरोध किया। गैरसरकारी सदस्योंने मी इनकार
घोर विरोध किया बही मानलन बारम्साल
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