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खिलात और अहिंसा

और म अहिंसाके मूल्यकी। पर मेरा कथन है कि ये दोनों पार्ने परस्पर विरोधी हैं। जो कुछ मैं चाहता हूं वह यह है कि इस प्रश्न पर दोनों तरहसे पूर्ण विचार होना चाहिये। मानव समाजके अर्वाचीन इतिहासको देखनेसे विदित होता है कि दूषित विचार तथा समझौताके भावने मानव जातिको सबसे अधिक क्षति पहुच.६ है। इसके उदाहरणमें राष्ट्रपति विल-सनके पतनका उदाहरण देकर लेखकने फिर लिखा है :-"क्या सत्याग्रहके आधारस्तम्भ ( महात्मा गांधी ) उस चेतावनी पर ध्यान देंगे? क्या वह अपने जीवन के साथ विश्वासघात करनेसे दूर रहेंगे ? क्या वे हिन्दू मुस्लिम एकताके प्रलोभनमें पडकर अपने जीवन के सिद्धान्तोंके विरुद्ध सत्यको नीचे दबावेंगे और खिलाफतके प्रश्नपर मुसलमानोंके साथ समझौता करेंगे।"

इस लेखने मुझे वाध्य कर दिया है कि खिलाफतके संबंध मैं अपनी स्थिति पर पुनः दो एक शब्द लिखू। यदि मैं केवल हिन्दू मुस्लिम एकताके प्रलोभनमें पड़कर अपने जीवन के सिद्धान्त आहिमाको तिलांजलि देकर 'खिलाफतका साथ हूं तो मैं अपनी आत्माके माथ विश्वासघात करूगा। पर जब मुझे पक्का विश्वास हो गया है कि मुसलमानोंकी मांग हर तरहसे सङ्गत और न्यायपूर्ण है तभी मैंने इसमें हाथ डाला। यह मेरे लिये अपूर्व अस वर था जो शायद इस जीवनमें फिर न उपस्थित होता । मैंने भली- भांति विचार कर देखा कि यदि इस अवसर पर मैं अपने मुसलमान भाइयोंके साथ होजाऊ और सङ्कटके समय उनका