(१) यह कहना निराधार है कि तुर्की को सबसे कड़ा दण्ड दिया जा रहा है और उसका राज्य छिन्न भिन्न किया जा रहा है। इस सम्बन्ध में अन्य दुश्मन राज्योंकी दशा भी ठीक इसी तरहकी है। प्रमाण स्वरूप अस्ट्रिया हङ्गरीका राज्य ले लजिये।
(२) तुर्कीके भविष्य का निपटारा मित्ररा ट्रोंके हाथमें रहेगा इसके निपटारेमें वे धार्मिकता तथा उदारतासे काम न लेकर राष्ट्रीयता राजनीतिज्ञता और उपयोगितासे काम लेंगे।
(३) प्रधान मन्त्रीने जो वचन दिया है उसके आधे भागके पाले जानेके लिये तो इतना जोर दिया जा रहा है पर आधेकी परवा नहीं की जा रही है। जैसे, तुर्कोके सम्बन्धमें तो कहा जा रहा है कि तर्कके साथ काम लेना चाहिये और तुर्कीका प्रश्न राष्ट्रीयता तथा नीतिके अनुसार हल किया जाना चाहिये पर जब अरबवालोंका प्रश्न आता है तब उसी न्यायप्रियता और राष्ट्रीयताके नामपर लोग बगले झाकने लगते हैं ।
(४) तुर्कोके शासनका परिणाम हर स्थान पर बुरा निकला है।
अब पहले एतराजपर विचार कीजिये। इन लेखोंके
लेखकने इस बातपर किसी तरहका एतराज नहीं उठाया है
कि तुर्कोको अधिक दण्ड दिया गया है। एक तरहके उन्होंने
इस बातको स्वीकार किया है। उनका कहना यह है कि