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खिलाफतका प्रश्न


(दिसंबर ३,१९१९)

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( दिसम्बर ३,१९१९ )

खिलाफत कान्फरेंसने खिलाफतके प्रश्नका पूरी तरहसे दिग्दर्शन करा दिया है। अब मुसलमानोंकी भयानक स्थितिका उन लोगोंको भी कुछ पता लगने लग गया है और वे भी इसे न्याययुक्त तथा संगत मानने लग गये हैं जो अब तक इसे या तो स्वीकार नहीं करते थे या इस प्रश्नपर पूर्ण उदासी- नता दिखलाते थे। टाइम्ल आफ इण्डियामें इस प्रश्नपर कई लेख निकले हैं। इन्हें खिटाफनके प्रश्नपर विचारवान और शिक्षित ईसाइयों का स्थिर निर्णय समझना चाहिये। इन्हें पढ़नेसे म्पष्ट हो जाता है कि अब तुर्कीके मामलेमें ईसाइयोंका मत भी बहुत बदल गया है। तुर्की के प्रश्नपर मत प्रगट करनेका अंग्लो इण्डियन पत्रोंका यह प्रथम प्रयास समझना चाहिये। यद्यपि इनमें अधिकांश उन्हीं बातोंकी चर्चा है जो तुर्कीके खिलाफ युद्धके समय कही जाती थीं तथापि इनकी पूर्णतया परीक्षा करना उचित है नहीं तो यही पत्र इस बातका भी शोर गुल मचाने लग जायगा कि खिलाफतके हिमायतियोंके पास अपने मतके समर्थनका कोई साधन नहीं है। हम सबसे पहले उनके इतराजोंको लिखते हैं :---