असहयोग सिद्धान्त का क्या उद्देश्य है यह तो मैं ठीक नहीं वतला सकता पर इतना मेरी समझ में अवश्य आया है कि प्रत्येक असहयोगी सरकारी कर्मचारोका पूर्ण विरोधी है। रोम साम्राज्य इतना बलिष्ठ और बलशाली केवल एक दिन में नहीं हुआ था। किसी कोई भी शासन व्यवस्था उस देश की स्थिति के बाहर नहीं बनायी जा सकती। थोड़ी देरके लिये मान लीजिये कि सारे के सारे ब्रिटिश अधिकारी आज ही अपना बोरिया बांधना लेकर इस देशको छोड़कर चले जायं तो ऐसी दशा में क्या आप सम्भव समझते हैं कि आपके देशवासी शासन का कार्य पूर्ण योग्यता के साथ चला सकते हैं और विना किसी तरह की गड़बड़ी के पूरा न्याय हो सकता है ? मैंने सुना है कि भारत के निवासी पुलिस से बहुत डरते हैं और भारतीय अफसर बड़े घूसखोर होते हैं। स्वराज्य प्राप्त करने के पहले प्रत्येक देशको अपनी राष्ट्रीयता का कोई रूप बना लेना चाहिये जिसपर वह अपना भविष्य कायम कर सके । क्या वह दिन आ गया है कि आपकी विविध प्रकार की सामाजिक, शिक्षा संबन्धी तथा राजनीतिक शक्तियां पूर्ण तथा पवित्र हो गई हैं ?
राजनीतिक आन्दोलन यदि क्रान्तिकारी हुआ तो इसमें नीच विचार के सभी मनुष्य आ मिलेंगे और यदि किसी उपाय से शासन का यन्त्र उनके हाथ में आ गया तो उसका संचालन ऐसे अयोग्यो के हाथ में आ जायगा कि वे लोग उसकी नीति को गढ़ में ढकेल
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