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खिलाफतकी समस्या

हिन्दुके लिये भारतकी स्वतन्त्रता प्राप्त करनेके लिये-चाहे वह साम्राज्यके भीतर हो या बाहर-शान्तिमय असहयोगके सिवा और कोई उपाय नहीं है। यदि भारतको अहिंसाको दुर्जय तथा अदम्य शक्तिका पता लग जाय और वह उसे ग्रहण कर ले नो आज ही उसे औपनिवेशिक स्वराज्य मिल सकता है। जब उसने अहिंसा भली भांति अभ्यस्त कर लिया है तब वह असहयोगको सर्वाग स्वीकार कर सकता है अर्थात् मालगुजारी देना भी बन्द कर दे सकता है। भारतवर्ष आज तैयार नहीं है पर यदि वह तुर्कीके नाश करनेके सभी तरीकोंको छिन्न भिन्न करनेके लिये तैयार होना चाहता है, अथवा उसकी दासताको और भी कठोर करनेके लिये जितने तरीके काममें लाये जायं उन्हें नष्ट करने के लिये तैयार होना चाहता है तो उसे अति शीघ्रताके साथ शान्तिमय अहिंसाके मन्त्रमें दीक्षित हाना चाहिये। पर इसमें इसकी किसी तरहकी हीनता नहीं प्रमाणित होगी उल्टे इसकी महना प्रमाणित होगी कि दूसरोंकी हत्याके बनिस्बत उसने अपना प्राण गंवाना ही उचित समझा।