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( जुलाई २१, १६२० )
भारतवर्ष एक महाद्वीप है। शिक्षित भारतीय अशीक्षित
भारतीयों की गतिको भलीभांति समझते हैं। सरकार और
शिक्षित भारतवासी भले ही समझे कि खिलाफत का प्रश्न
महज एक चलतू सङ्कट या आपत् है पर लाखों मुसलमान
इसको दूसरी ही दृष्टि से देखते हैं। मुसलमानों का देश-त्याग
धीरे-धीरे बढ़ रहा है। समाचार पत्रों के कालम के कालम रङ्ग
गये हैं कि किसी विशेष ट्रेन द्वारा एक बारिस्टर कुल ७६५
आदमियों को लेकर अफगानिस्तान चले गये। मार्ग में लोगों ने
उन्हें प्रोत्साहन दिया। लोगोने नगदी, भोजनकी सामग्री
तथा अन्य आवश्यक वस्तुए दी। मार्गमे महाजरीन ने उनका
साथ दिया। एक क्या हजारों शौकत ओलोकी इस तरहकी
उन्मत्त शिक्षा लोगों के हृदय में इतना जोश नहीं ला सकती कि
वे अपना घर छोड़कर किसी अनजान देश में जाने के लिये
तैयार हो जाय। इसमें विश्वास के कोई आन्तरिक भाव अवश्य
होंगे। वे समझते हैं कि जिस राज्यमें उनकी धार्मिक भावोंको
भी रक्षा नहीं हो सकती उसको त्यागकर विदेशमें भिख-
मङ्गोंकी तरह भटकना कहीं अच्छा है। इस दृश्यकी अवहेलना