सफलता हो। अतीत कालसे यह होता आया है कि यदि राजा कुशासन आरम्भ कर दे तो प्रजा उसका साथ छोड दे सकती है।
साथ ही मैं यह भी स्वीकार करता हूँ कि सामूहिक सविनय अवज्ञा आपत्तियोंसे भरी है। पर जो विपत्तिका पहाड़ मुसलमानोंके ऊपर घहराकर गिरा है उसका प्रतीकार तबतक नहीं हो सकता जबतक ऐसे ही दुरूह शख न प्रयुक्त हों। यदि इस समय कष्ट न उठाया जाय तो भविष्यमें इससे अधिक आपत्ति झेलनी पड़ेगी और कानन तथा शान्तिके भी भंग होनेकी संभावना रहेगी।
पर अब भी असहयोग रोक देने का अवसर है। जिस तरह
आपके पूर्वके बड़े लाट मिस्टर हार्डिअने दक्षिण अफ्रिकाकी अशा-
न्तिके समय भारतीयोंके आन्दोलनको स्वयं अपने हाथमें ले लिया
था उसी प्रकार आप भी खिलाफतके आन्दोलनको अपने हाथमें
ले लीजिये, यही मुसलमानोंकी प्रार्थना है। पर यदि आप इसे
स्वीकार करनेके लिये तैयार नहीं हैं और यदि लोगोंने देखा कि
सिवा असहयोगके अन्य कोई चारा नहीं रह गया है तो मुझे पूर्ण
आशा है कि मुझे और जिन लोगोंने मेरी बात मानकर इस व्रतको
स्वीकार किया है किसी तरहसे दोषी नही ठहरावेंगे क्योंकि उनका
कर्तव्य उन्हें इसी मार्गपर चलनेके लिये प्रेरित करता है।
बम्बई
जून २२, १९२०
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आपका सेवक मोहनदास कर्मचन्द गांधी
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