रही। पर हमने किसी तरहका वचन नहीं दिया था। प्रायः
लोग इस बातको भूल जाते हैं कि संसारमें मुसलमान रिआया
हमारे साम्राज्यमें सबसे अधिक हैं क्योंकि ब्रिटिश साम्राज्यकी
प्रायः चौथाई प्रजा मुसलमान हैं। इन लोगोंने इस संकटके
समय उत्कट राजभक्ति दिखलाई और तत्परतासे साम्राज्यकी
सहायता की। हम लोगोंने उन्हें आशापूर्ण वचन दिया और
उन्होंने उसे स्वीकार कर लिया। अब उन्हें इस बातकी
आशङ्का होने लगो है कि हम लोग उस प्रतिज्ञाका पालन नहीं
करेंगे और इसीलिये वे उत्तेजित हो गये हैं।"
उस प्रतिज्ञाका क्या अर्थ लगाया जाय और इस कामको कौन करे ? भारत सरकारने उस प्रतिज्ञाका क्या अर्थ लगाया ? उसने सच्चे हृदयसे इस बातको स्वीकार किया कि नहीं कि मुसलमानोंके पवित्र क्षेत्रोंके संरक्षणका पूर्ण अधिकार खलीफाके हाथमें होना चाहिये ? ब्रिटिश सरकारने इस बातकी चर्चा की कि जज़ीरतुल अरबका पूरा हिस्सा तुर्को के हाथसे ले लिया जाय और मित्रराष्ट्रोंके सूचनापत्रके अनुसार उसे मित्रराष्ट्रोंमें बांट दिया जाय, क्या तोभी प्रतिज्ञा भंग नहीं होती? यदि सन्धिकी प्रत्येक शर्ते उचित हैं और प्रतिज्ञाके अनुसार हैं तो फिर भारत सरकार मुसलमानों के साथ खुली सहानुभूति क्यो प्रगट कर रही है। मैं यह भलीभांति समझा देना चाहता हूं कि मेरे बारेमें किसीको यह भ्रम न उत्पन्न हो जाय कि मैं मिस्टर लायड जार्जकी घोषणाले पूर्णतया सहमत या उसका