सर दीनशा वाचा तथा मिस्टर सुरेन्द्रनाथ बनर्जी भारतीयों के प्रति-निधि बन कर उस कमीशन के सामने गवाही देने के लिये इङ्गलैंड गये। पर इसको कुछ भी प्रभाव नहीं पड़ा। कांग्रेस ने जिन बातों की सिफारिशें कों, उनकी कुछ भी सुनवाई नहीं हुई। इसका परिणाम यह निकला कि कुछ भारतीय कि दिल में इस तरह का विश्वास उठने लगा कि इस प्रकार के कमीशन और कमेटी अन्धे होते हैं, ये अन्धों की तरह काम करते है। इनसे किसी तरहके लाभको सम्भावना प्रतीत नहीं होती।
इस तरह के प्रयासों को निष्फल होते देख एक दल तो हताश हो गया। उस दलने देखा कि इस तरह प्रार्थना पत्र में तथा डेपुटेशन आदि भेजने में सिवा राष्ट्र के अपमान के किसी तरह का लाभ नहीं हो सकता। यदि अपना प्रयास सफल बनाना हैं तो जनता को जागृत करना नितान्त आवश्यक है। इसी समय भारत के सौभाग्य या दुर्भाग्य से लार्ड कर्जन भारत के बड़े लाट होकर आये। कांग्रेसने बड़े भरे पूरे शब्दोंमें इनका स्वागत किया और आशा किया कि इनके नेतृत्व में देश की सुख और समृद्धि बढ़ेगी और जनता के हृदय से जो विश्वास उठ गया है उसकी पुन: खापना होगी। पर लार्ड कर्जन ने प्रथम चरण में हो कांग्रेस की सारी आशाओं पर पानी फेर दिया। आपने शासन की बागडोर अपने हाथ में लेते ही दो कानन