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खिलाफतकी समस्या


योग दान नहीं किया। क्या इसमें प्रहलादने ऐसा कोई भी काम किया जो उसके पिताके विरुद्ध कहा जा सके। जीससने फैरासिस और वहां के सकुचित विचारवालोंके साथ सहयोग करना स्वीकार नहीं किया और उनसे किसी तरहका सम्बन्ध नहीं रखना चाहा। तो क्या ऐसा करके उसने यहूदियोंके विघातक कोई भी भाव प्रगट किया ? ऐसे मामलों में प्रत्येक आचरणसे ही मनुष्यकी इच्छाका पता लग सकता है। हमारे मित्रने अपने ऊपरक पत्रमें लिखा है कि साधारण स्थितिमें सरकारके साथसे हर तरहका सहयोग हटा लेना, उसके कामको असम्भव कर देना है। पर मैं इस मतको सर्वथा सही नहीं मानता। सच बात तो यह है कि इस तरहके असहयोगसे हर तरहका अन्याय असम्भव हो जायगा ।

मेरे मित्रने फिर लिखा है:-भारत सरकारने यथासाध्य सब कुछ किया। हरतरहका चेष्टाय की, उसका जहां तक बल फटा चेष्टा की, ऐसी अवस्थामें उसके साथ असहयोग करना अनु-चित प्रतीत होता है। मैं इस बातको स्वीकार करता हूं कि भारत सरकारने कुछ प्रयत्न अवश्य किया पर जितना उसके हाथमें था या जितना वह कर सकती थी या कर सकती है उसका आधा भी प्रयत्न उसने नहीं किया है। इसके अति-रिक्त जब सरकार यह देखती है कि, खिलाफतके प्रश्नपर भारतीय मुसलमानोंके साथ साथ भारतकी अन्य प्रजा भी लाखों और करोड़ोंकी संख्यामें क्रुद्ध है तो केवल विरोध करने