पृष्ठ:यंग इण्डिया.djvu/४१४

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२५८
खिलाफतकी समस्या

बातें न सुनी गई, यदि उनके मन्तव्योंकी हार हुई तो फिर बड़े लाटका शान्ति परिषदमें मुसलमानों के मन्तव्योंको भेजना न भेजना, उन पर जोर देना और न देना बराबर रहा। यदि मुस-लमानों की असफलता रही तो वे निश्चय यही सोचेंगे और कहेंगे कि प्रिटनने अपने वचनका पालन न कर अपना कर्तव्य नहीं निबाहा। बड़े लाटका उत्तर इस मतकी पुष्टि करता है। बड़े लाटने अपने उत्तरमें-जो उन्होंने डेपुटेशन के सदस्योंको दिया था, कहा था-यदि तुर्कोने जर्मनीका साथ देनेकी भूल की है तो उसके लिये उसे दण्ड भोगना नितान्त आवश्यक है। यह स्पष्ट है कि बड़े लाट महोदय ब्रिटिश प्रधान मन्त्रीके ही भावोंको प्रामो-फोनकी चूड़ीकी तरह दोहरा रहे है। मुसलमानों की तरफसे उत्तर देते समय जिस बात की आशा झलकाई गई है उसीका समर्थन करते हुए हम भी जोर देकर कहते हैं कि ब्रिटिश मन्त्रि-मण्डल अपनी भूलोंको अभीसे सुधार लेगी और तुर्कीके प्रश्नका इस प्रकार निपटारा करेगी जिससे भारतीय मुसलमानो का मन शान्त हो जाय।

मुसलमानों की मांगे क्या हैं ? मुसलमान लोग चाहते हैं कि खलीफाका पद सुरक्षित कर दिया जाय और अरबपर तथा अन्य मुस्लिम पुण्य (तीय) क्षेत्रोंपर तुर्को का राज्य सुरक्षित कर दिया जाय। साथ ही खलीफा के राज्यके अन्तर्गत मुसल-मानोंके अतिरिक्त जो जातियां निवास कर रही हैं उनकी रक्षा-का पूरा और समुचित प्रवन्ध कर दिया जाय तथा यदि अरबके