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खिलाफतकी समस्या


खून किया। पर कृष्णजन्मके समय ईश्वरी लीलाकी विजय हुई । कृष्ण परमात्माके बदले कन्या-देहधारिणी शक्ति कसके हाथ लगी। कंसने उसे जमीनपर पछाड़ा। पर शक्तिसे कही शक्ति थोड़े ही मरनेवाली थी। वसुदेवने श्रीकृष्णका गोकुलमे रखा था। पर परमात्माको कोई बात छिपकर तो करनी ही न थी ! उन्हें किसी बातके खुले आम करनेसे कौन डर था ? शक्तिने लजित कंसको अट्टहास करके कहा 'तेरा शत्रु तो गोकुलमे दिन-दूना और रात चौगूना बढ़ रहा है।' मथुरासे गोकुल बृन्दावन बहुत दूर नहीं, शायद चार-पांच कोस भी न हो। कंसने कृष्णको मारनेके लिये एक भी प्रयत्न उठा न रखा। पर उसे यही न मालम हुआ कि कृष्णका मरण किस बातमें है ? कृष्ण अमर तो थे ही नहीं। पर मरणाधीन भी न थे। धर्म-कार्य करने के लिये वे आये थे। जबतक धर्मका राज्य स्थापित नही होता तबतक उन्हें विराम कहांसे मिलने लगता ? कंसने सोचा कि श्रीकृष्णको अपने दरबार में बुलाकर ही मार डालूं। पर उसकी बाजी वहीं बिगड़ी, क्योंकि प्रजाने परमात्मतत्वको पहचान लिया था। वह उसके अनुकूल हो गई।

कंसका नाश देखकर जरासंघको चेतना चाहिये था। पर जरासंधने सोचा कससे मै अधिक सावधान और दक्ष हूँ। अनेक भिन्न भिन्न अवयवोंको जोड़कर मैंने अपने साम्राज्यको प्रबल बनाया है। मल्ल-युद्धमें मेरी बराबरी दूसरा कौन कर सकता है ? मेरी नगरीका कोट दुर्भध है । मुझे किसका डर हो