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पंजाबकी दुर्घटना

तीय मुसलमानोंकी ओरसे जो बातें पेश की गई हैं उन्हें सन्धि परिषदके सदस्य स्वीकार करनेको तयार नहीं है।" यदि यह कथन असत्यसे भरा नहीं है तो नितान्त भ्रम उत्पन्न करनेवाला है। बड़े लाट साहब भली भांति जानते हैं कि सन्धिकी शर्तोंमें मित्र राष्ट्रोंका हाथ नही है। वे जानते हैं कि इसके प्रधान कर्ता धर्ता मिस्टर लायड जार्ज हैं और उन्होंने अपनी इस जिम्मेदारीके खिलाफ एक शब्द भी नहीं कहा है। कुस्तुन्तू- निया, थेम तथा एशिया माइनरके सम्बन्धमें उन्होंने भारतीय मुसलमानोको जो वचन दिया था उसे तोड़कर उन्होंने उद्दण्डता पूर्वक इन शर्तीको उचित और नोतिपूर्ण बतलानेकी भी धृष्टता को है। जब ब्रिटनने ही सन्धिके प्रत्येक शोंको बनाया है तो उसकी जिम्मेदारीका भार मित्रराष्ट्रोंके ऊपर देकर मठ बोलनेसे क्या लाभ ? यह स्मरण कर कि बड़े लाट इस बातको स्वीकार करते हैं कि मुसलमानोंकी मांग न्यायपूर्ण और सङ्गत हैं. उनका अपराध और भी गुरुतर हो जाता है, और यदि उसके सङ्गत और न्यायपूर्ण हानेमे उनका दृढ़ विश्वास न रहता तो वे उसके लिये चेष्टा भी न करते।

मैं साहसके साथ कह सकता कि बर्ड लाटके इस भाष- से तथा पञ्जाबके विषयमें जो मत प्रगट किया है उससे हम लोगोंको और भी दृढ़ विश्वास हा गया है कि हमें इन दोनों अत्याचारोंके प्रतीकारके लिये सबसे प्रथम चेष्टा करनी चाहिये और सुधारोंकी चर्चा पीछे करनी चाहिये।

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