माइकल ओडायर या जेनरल डायरके पेंशन बन्दीका प्रश्न उठा तो मैं अपने पदसे स्तीफादेकर अलग होजानाही उचित समझूँगा,क्योंकि नौकरीमे रहकर उस कामका समर्थन करना मैं अनुचित समझता हूँ। उसके उत्तर में मैंने कहा, आपके साथ मेरी सहानुभूति तो अवश्य है पर मै आपकी रायसे किसी भी तरह सहमत नहीं हो सकता और न उसे ही इस बातकी आशा थी। हजारो अंग्रेज स्त्री पुरुष सर माइकल ओडायर और जेनरल डायरको साम्राज्यका उद्धारक और अंग्रेजोंकी प्रतिष्ठाका रक्षक मानते हैं। यह भी संभव है कि यदि मै भी अंग्रेज जातिका होता और यदि मेरा भी विचार होता कि किसी भी उपायसे भारतको अपने अधीन रखना ही अंग्रेज जातिका परम कर्तव्य है तो कदाचित मैं भी इसी विचारका होता। जब तक इस तरहके भाव भरे रहेंगे तबतक सरकार और प्रजाके बीच सहयोग होना कठिन ही नहीं बल्कि असम्भव है। असहयोग आन्दोलन अंग्रेज जातिकी आंखें खोल देगा, उन्हे सुझा देगा कि शासनमें सहयोगका अभिप्राय उनके इस तरहके (उपरोक्त प्रकार के) भावको स्वीकार करना है। पर मित्र या सहयोगीको हैसियतसे यह विरोधाभास प्रगट करता है। भारतमें वे अपनी तोप और तलवारोके बलपर सदा स्थायी नही रह सकते पर हमारी सदिच्छा प्राप्त करके वे सदा स्थायी रह सकते हैं। सरकार तथा प्रजाके बीचके संबन्धको इसी आधारपर स्थिर करना चाहिये। ऊपरसे तो बनावटी बराबरी-
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चोटपर चोट