सीधे शेसन्स अदालत में अपने अभियोग पर विचार करावे और
चौथो तथा सबसे आवश्यक माम यह थी कि व्यवसापक और
प्रवन्धक विभाग अलग कर दिया जाय। पांचवीं मांग यह थी कि
सेना में भारतीयों को भर्ती होने को स्वतन्त्रता मिलनी चाहिये।
और भारतीयों को सैनिक शिक्षा देने के लिये भारत में ही सैनिक
कालेज खुलना चाहिये। शला कानून में सुधार होना चाहिये। भारत के व्यवसायिक विकास के लिये शिल्प तथा व्यवसायिक कालेज खुलने चाहिये और लोगों को शिल्प तथा कलाकी शिक्षा दी जानी चाहिये।
भारत के अंग्रेज कांग्रेस की इन मांगों को शुभ दृष्टि से नहीं देखते थे। जिस लार्ड डफरिन ने ऐसी संस्था की आवश्यकता बतलाई थी वे ही अब नौकरशाही के प्रभाव में पड़कर फिसल पड़े। १८८८ में सन्त अण्डरूज के भोजके उपलक्ष्यमें भाषण करते हुए लार्ड डफरिन ने कांग्रेस को “अदूरदर्शियों को सभा बतलाई थी और उसके उद्देश्य को “अन्धेरे गड्ढे में कूदना" बताया था। प्रायः ३० वर्षतक अंग्रेज लोग इस शब्दका प्रयोग कांग्रेस के लिये करते आये हैं। कांग्रेस की चौथी बैठक इलाहाबाद में हुई। उसके सभापति मिस्टर जार्ज पूल थे। उन्होंने दूढ़ता के साथ कहा था:-"हमें किसी के कटाक्षों या भालेपोसे शबराना नहीं चाहिये। प्रायः प्रत्येक नये भाग्दोलब को तीन