दण्ड नहीं देना चाहता बल्कि वह उन नौकरोंकी घर्खास्तगो चाहता है जो अपने पदको अच्छी तरह नहीं निवाह सके और न उसकी मार्यादाका पालनही कर सके। जब तक उन्हें भारतीय खनानेसे पेंशन मिलती रहेगी तब तक वे बर्खाश्त किये हुए नहीं समझ जा सकते। यदि पिता उस पुत्रकी सहायता करता है जिसे अपनी बुरी करनीवर पश्चात्ताप नहीं हैं तो वह भी अपने पुत्र के लिये पापका भागी होता है।
कांग्रेसकी गैर सरकारी कमेटीके सामने दो दण्ड विधान थे। या तो वह उनपर अभियोग चलवाना चाहती या उनकी वरखास्तगी। उसने मनुष्यताके नाते उनकी बरखास्तगी ही पसन्द की। इसमें उस किसी बातकी सुविधा नहीं थी। हम पाठकोंको यह बतला देना चाहते हैं कि इस निर्णयपर पहुचनेमें कमेटी के सदस्योंको कई घण्टे तक विचार और परामर्शमें बिताना पड़ा। रिपोर्ट पर अन्तिम निर्णय काशीमें गङ्गाजीके तटपर हुमा। पूर्ण वादविवादके बाद वे सर्व सम्मतिसे इसी निर्णय पर पहुंचे कि अभियोग न चलानेसे ही भारत फायदेमें रहेगा। अभी हाल में ही पटनामें भाषण करते हुए श्रीयुत देशबन्धु दासने कहा था कि कमेटीके सदस्योंने परस्पर यह वचन दे दिया है कि यदि हम अपनी मांगको अल्पतम रखते हैं तो हमें उचित है कि हम उसको पूरा करानेके लिये अपना प्राण तक निछावर कर दें। इसलिये कर्तव्यके लिहाजसे थे कमि-भर पूर्णरूपसे असहयोगी हैं। उन्होंने दण्ड देनेके अधिकारका