प्रकृति उदारताकी मूर्ति है-भारतीयोंने इसमें और भी विशे- पता प्राप्त कर ली है। मुझे आशा है कि प्रार्थनापत्र अथवा किसी तरहके आन्दोलनको अवसर न देकर पजाबको सरकार अथवा भारत सरकार फांसीकी आशाको फौरन रह कर देगी और जहां तक सम्भव है अभियुक्तोंको मुक्त कर देगी।
दो कारणोंसे इस बातकी आवश्यकता प्रतीत होती है और दोनो कारण प्रधान या मुख्य हैं। पहला कारण, जनताके हृदयमे विश्वासका वोजारोपण करना है। इसकी चर्चा हमने ऊपर की है। दूसरा कारण सम्राट को घोषणाको पूर्णतया चरितार्थ करना है। सम्राट ने अपनी घोषणामें कहा है-"जिस राजनैतिक कैदीसे किसी प्रकार की आपत्तिकी सम्भावना न हो उसे छोड़ देना चाहिये।" कोई नहीं कह सकता कि ये २१ अभियुक्त-जिनकी अपील की गई थी-यदि छोड़ दिये आय तो किसी भी प्रकारसे समाजके लिये भयावह होंगे। उन लोगोने इसके पूर्व कोई अपराध नहीं किया है। उनमेंले कई एक आदरणीय प्रजाकी हैमियतसे माने जाते थे। किसी तरहके भी क्रान्तिकारी दलसे उनका संपर्क नहीं था। यदि उन्होंने कोई अपराध किया है तो उन्होंने क्षणिक जोशमें आकर किया है जो प्रबल उन्होजनाके कारण उनमें भा गया था। इसके अतिरिक्त जनताका विश्वास है कि सैनिक अदालतोंने जितने फैसले किये हैं किसीका आधार प्रामाणिक नहीं है। इसलिये हमें पूर्ण आशा है कि जो सरकार आजतक अपराधयुक्त राज-