इवट साहब कानूनी सदस्य थे। उन्होंने उस बिलको उपस्थित
किया। विदेशी समाचार पत्रोंने बड़े लाटको अति घृणित
गालियां दीं। भीषण आक्षेप किये गये। भारतीय अंग्रेजोंका
विरोध इतने हीसे समाप्त नहीं था। उन्होंने निश्चय कर
लिया था कि यदि बड़े लाट अपने इस कामसे बाज न
माये और यदि इस बातको सम्भावना प्रतीत हुई कि वे इस
विलको मन्जूर करा कर ही छोड़ेंगे तो किसी रातको हम
लोग एकाएक हमला करेंगे पहरेदारों और सन्तरियोंको
कब्जे में कर लेंगे और बड़े लाटको वांधकर जहाजमें बैठा कर
लण्डन भेज देंगे।
इधर तो सफेद जातिके लोग इस तरह विरोधके लिये
बड़े थे और उधर भारतीय-जिनके लिये बिचारे लार्ड रिपन यह प्रयास कर रहे थे--सर्वथा उदासीन और निष्ट रहे। किसी भी और से सहायता न पाकर बिचारे लार्ड रिपन लाचार हो गये और उन्हें अपना प्रयास छोड़ देना पड़ा।
कांग्रेसका जन्म ।
पर इससे एक लाभ हुआ। शिक्षित भारतीयोंने इस
आन्दोलन से सङ्गठनका प्रभाव समझा। उन्हें यह विदित हुआ
कि सङ्गठन द्वारा हम किसी भी शक्तिको नीचा दिया
सकते हैं। उन लोगोंने यह भी देखा कि यदि भारतीय