तरहसे प्रमाणित हो जाता है। महात्माजी ने लिखा है:---कसूर से एक तार मिला है कि वहां सबडिविजनल अफसरने एक मुसलमान को बड़ी निर्दयता के साथ पीटा है । उसपर यह अपराध लगाया गया था कि उसने दीवारपर खिलाफत का पोस्टर
लगाया था। अनुसन्धानसे विदित हुआ कि उसने पोस्टर नही चिपकाया था और वह सर्वथा निर्दोष था। मेरी समझ में यह बड़ी भारी बात हो गई। ब्रिटिश अधिकारी इस प्रकार कानून को अपने हाथ में ले लें और इस तरहके अत्याचार करें, यह असह्य है। इसलिये डाकृर परशुराम को लेकर मैं कसूर गया। मैंने दोनों मुसलमानों का गवाहियां लीं जिन्हें सबडिवि.जनलर अफसरने पीटा था। उसी समय मिस्टर मासंडन ने पत्र लिखकर मुझे बुलाया। मैं उनसे मिला। उन्होंने मुझसे कहा कि मैंने उन मुसलमानोंसे क्षमा मांग ली है और हर जाने के तौर पर उन्हे १०) रु० दिया है। मैंने उनसे कहा कि आपने खुली तौरपर उन्हें मारा है इसलिये खुली तौर पर क्षमा भी मांगनी चाहिये। वे मेरी बात मानकर तैयार हो गये । दीवाल पर वे पोस्टर पुनः लगाये गये । इसके बाद ही मैंने एक महती सभा में भाषण किया जिसमें प्रायः ४००० नरनारी उपस्थित थे। मैंने अपने भाषण में मिस्टर मार्सडन के विना किसी शर्त के क्षमा मांगने की बात कही और वे सन्तुष्ट हो गये।"
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