दूष्टि से नहीं हुआ है। इनके विचारमें इतना अधिक समय
लगा दिया गया है कि इस अवस्थामें उन्हें फांसीपर लटकाना लोगों को अतीव दुःखदायो होगा । कोई भी बड़ा लाट इन सब अवस्थाओं का पर्यवेक्षण करके मृत्युदण्ड को अवश्य हटा दिये होता पर लाट चेम्स्फोडे ऐसा नहीं कर सके। उनकी धारणा है कि जब तक एक दो आदमियोंको फांसी न दी जायगो न्यायकी मर्यादाका पूर्णतः पालन नहीं हो सकता। उनके प्रति जनताके जो भाव हैं, उसका उन्हें (बड़लाटको) परवा नही है। हमें अब भी आशा है कि लाडे चेम्सफोर्ड या भारत मन्त्री मिस्टर माण्टेगू इस दण्ड विधानको अवश्य वदल देंगे। यदि सरकार ने भूलकी पराकाष्ठा प्रगट की और इन दण्डों को ज्यों का त्यों रहने दिया और जनताने इसपर किसी तरह का क्रोध या रोष प्रगट किया तो उनके सिरपर
भी कम दोष नही आवेगा। जब तक कि हमारी राष्ट्रीयता में इतना बल न आजाय कि संसारके राष्ट्रोंमें हमारी भी पूछ होने लगे हमलोगों को पूर्ण शान्ति और धैर्य के साथ इस तरह के हजारों और लाखों वलिदान देने होंगे। इसलिये हमें पूर्ण आशा है कि इस तरहकी घटनावली से हताश होने के बदले हमें साहस ग्रहण करना चाहिये और फांसी आदि दण्डविधानों को जीवन की साधारण घटना समझनी चाहिये ।
[नोट---इस समाचार के छप जानेपर समाचार मिला कि उनकी फांसी-का दण्ड किसी भी प्रकार घटाया नहीं गया। बटु लाट साहब ने भारतीयों की आत्मा पर वह बज्र प्रहार करके ही छोड़ा। पर हमारा कर्तव्य है कि इस भीषण आघातको भी पूर्ण शान्तिके साथ बर्दाश्त करे ।--- सम्पादक यंग इण्डिया ]
-----:*:-----