और अनुपयोगिताका पता चलता था। इसलिये ऐसे प्रश्नोंपर पर्ण प्रकाश रालना नितान्त उचित और आवश्यक था। इस पातको भी ध्यानमें रखना उचित होगा कि रावसाहब हीरालाल देसाईने इन प्रश्नों में उन कार्रवाइयोंके काननी भधिका-रका प्रश्न नहीं उठाया था, क्योंकि ऐसी अवस्थामें ये प्रश्न हण्टर कमेटीकी जांचके विषय हो जाते । उन्होंने केवल इतना ही पूछा था-"क्या बम्बई सरकार बतला सकती है कि अहमदाबादमें अशान्तिके दिनों में पुलिस ऐकृका जिस प्रकार प्रयोग किया गया था वह न्याययुक्त था ?' इस प्रश्नका उत्तर न देकर केवल टालमटोलसे काम लेकर बम्बई साकारने साधारण न्यायका भी गला घट दिया है। जहांतक हमलोग समझते हैं हण्टर कमेटी इन बातोंकी जांच करने नहीं जारही है कि उपद्रवके दिनोंमें ओ सरकारी इमारतें जला या ढहा दी गई ये किस संवतमें बनाई गई थीं, उनमें कितना वर्ग लगा होगा और उनका वर्तमान मूल्य क्या होगा, कुछ लोग जुर्माना देनेसे बरी क्यों किये गये और जो लोग बरी किये गये हैं वे ही बरी होनेके योग्य हैं ? ऐसी दशामें बम्बई सरकारकी कार्रवाई और भी मर्यादाहीन प्रतीत होने लगती है क्योंकि इस प्रकारके प्रश्नोंपर पूर्ण प्रकाश डालनेका एकमात्र साधन सरकारका उत्तर था।
हमलोग इस विषयमें भी पूर्ण अन्धकारमें हैं कि हण्टर कमेटोने पहलेसेही इन विषयोंको अपनी जांचके अन्दर रख लिया था अथवा बम्बई सरकारके उत्तरके बाद अपनी सीमाको बढ़ाकर उन्हें भी अपने अन्दर ले लिया है ? हमें आशा है कि चाहे भारत सरकार चाहे हपटर कमेटीके मन्वो इस प्रकारकी सूचना निकालकर जनताको सधी बातकी सूचना देंगे और इस विषयपर पूर्ण प्रकाश डालेंगे।