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पंजाब की दुर्घटना


उमङ्ग और आशा से भर देता है । उसी भूमि में पलकर लोगों ने प्रवर पण्डित ऋषियों से सत्ज्ञान उपार्जित किया था । इस भूमि में एक महर्षि की पत्नी ने अपने पतिदेव से कहा था:---

"इन भौतिक पदार्थो से क्या लाभ यदि ये मृत्यु की विभीपिका- को नहीं मिटा सकतीं ।” कालान्तर में वही ऋषिपत्नी स्वर्गकी देवी बन गई और आज भी करोड़ों भारतवासी उनके गान गाते हैं जिसका अभिप्राय है:---“हे प्रभु,अनृत्त से मेरी रक्षाकर, सत्य का मार्ग मुझे दिखा, अंधेरे से निकालकर मुझे प्रकाश मे ले चल, मृत्यु के भय से हटाकर मुझे अमर बना दे और मुझे अपना दर्शन दे और अपनी सहज उदारता से रक्षा कर ।” यह वही भूमि है जहां युवक कुमार नचीकेतने सांसारिक सुखों और भोगों को ठुकराकर अमरत्व को प्राप्त किया था । नचीकेतकी तपस्या से प्रसन्न होकर धर्मराज ने उसे एक वर देना चाहा । उसने धर्मराज से कहा---"धन से कोई महान नहीं बन सकता, मै केवल यही चाहता हूं कि आप मुझ परलोक का ज्ञान दीजिये ।" इसी पंजाब में देवता लोग स्वर्ग के विहित सुख और आनन्दो को त्याग कर ऋषियों को सेवा में रहकर ब्रह्मवर्य व्रत का पालन करते थे ।

यह तो प्राचीन कालकी बातें है । आधुनिक समय में पंजाब धार्मिक विकास का जन्मक्षेत्र रहा है । सिक्ख धर्मका प्रादुर्भाव इसी भूमि में हुआ । इन गुरुओं ने धर्म के लिये जो त्याग किया है, जो वलि दिया है उसे स्मरण करके रोमाञ्च हो जाता है । ये धार्मिक भाव, ये अनन्यत्याग हम लोगों के लिये अनुकरणीय है ।