वे आत्म गौरव को भी बेचना नहीं चाहते थे। निदान इसके लिये उन्होंने किसी तरह का आन्दोलन खड़ा करना उचित न समझकर केवल अधिकारियों को इस बात की सूचना दे दी कि ऐसी अव -स्था में हम लोग जुर्माना देने में सर्वथा असमर्थ हैं। इसलिये उनके नाम कुर्को जारी की गई। डाकृर कानगा की डाकृरी अच्छी है इसलिये उनकी सन्दूक सदा भरी रहती है। चालाक कुर्क अमीन ने इसी सन्दुक को नीलाम पर चढ़ाया और जुर्माना वसूल करने के लिये काफी रुपया ले गया। पर वकील का पेशा ऐसा है कि वह सन्दूक लिये लिये नहीं फिर सकता इसलिये कुर्क अमीन ने उनकी (श्रीयुत पटेल की) एक पलंग को नीलाम करा ली। इस प्रकार इन सत्याग्रहियों ने अपने आत्म गौरव की पूर्णतया रक्षा की।
संभव है अदूरदर्शी लोग इसे बेवकूफी का नमूना बताकर इसकी हंसी उड़ावे कि सीधी तौर से जुर्माना न देकर माल असवाब कुर्की पर चढ़वाने से क्या लाभ था? पर इस तरह के उदाहरणां की बहुलता पर विचार करके देखिये कि अधिकारियों को हजारों कुर्की निकालने मे कितनी कठिनाई का सामना करना पड़ेगा । चन्द आदमियों के लिये ही कुर्की निकालना सम्भव है। पर यदि इनका प्रयोग अधिकांश उन महात्माओं के लिये प्रयुक्त होता है जिन्होंने कोई अपराध नहीं किया है और जो किसी सिद्धान्त को चरितार्थ करने के लिये जुर्माना देना स्वीकार नहीं करते, तो बड़ी कठिनाई उपस्थित हो